Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) 182 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान "ऊँ ह्रीं। रत्नैः सुवर्णे/जैर्या रचिता जपमालिका।
सर्वजापेषु सर्वानि वांछितानि प्रयच्छतु।।" वाहन-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - "ऊँ यां यां। तुरंगहस्तिशकटरथमोढवाहनम् ।
गमने सर्वदुःखानि हत्वा सौख्यं प्रयच्छतु।।" सर्वशस्त्र-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - "ॐ द्रां द्रीं ह्रीं। अमुक्तं चैव मुक्तं च सर्वं शस्त्रं सुतेजितम् ।
हस्तस्थं शत्रुघाताय भूयान्मे रक्षणाय च।।" कवच-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - “ॐ रक्ष-रक्ष। लोहचर्ममयो दंशो वज्रमंत्रेण निर्मितः ।
पततोऽपि हि वज्रान्मे सदा रक्षां प्रयच्छतु।।" प्रक्षर (एक प्रकार का कवच)-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र
बोलें
"ॐ रक्ष रक्ष। तुरंगस्यास्यरक्षार्थ प्रक्षरं धारितं सदा।
कुर्यात् पोषं स्वपक्षीये परपक्षे च खण्डनम् ।। स्फर (ढाल)-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - “ॐ रक्ष-रक्ष। सर्वोपनाहसहितः सर्वशस्त्रापवारणः ।
स्फर स्फरतु मे युद्धे शत्रुवर्णक्षयंकरः ।। गाय, भैंस, बैल आदि की अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - "ऊँ घन-घन। गावोनानाविधैर्वर्णैः श्यामला महिषीगणा।
वृषभाः सर्वसंपत्तिं कुर्वन्तु मम सर्वदा।।" गृह-उपकरण-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - "ॐ श्रीं। गृहोपकरणं सर्वं स्थाली घट उलूखलम्।
स्थिरं चलं वा सर्वत्र सौख्यानि कुरुतात् गृहे ।।" क्रय-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - "ऊँ श्रीं । गृह्यमाणं मया सर्व क्रयवस्तु निरन्तरम् ।
सदैवं लाभदं भूयात् स्थिरं सुखदमेव च।।" विक्रय-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - "ॐ श्रीं। एतत् वस्तु च विक्रेयं विक्रीणामियदंजसा।
तत्सर्व सर्वसंपत्तिं भाविकाले प्रयच्छतु।।"
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