Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
View full book text ________________
आचारदिनकर (खण्ड-३) 180 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
अग्नि-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - "ऊँ रं। धमार्थकार्यहोमाय स्वदेहाय वाऽनलम्।
संधुक्षयामि नः पापं फलमस्तु ममेहितम् ।।" चूल्हे की अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - "ऊँ रं। अग्न्यगारमिदं शान्तं भूयाद्विघ्न विनाशनम् ।
तद्युक्तिपाकेवान्येन पूजिताः सन्तु साधवः ।।" शकट-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - "ऊँ । सर्वदेवेष्टदानस्य महातेजोमयस्य च।
आधारभूता शकटी वढेरस्तु समाहिता।।" वस्त्र-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - "ॐ श्रीं। चतुर्विधमिदं वस्त्रं स्त्रीनिवास सुखाकरम् ।
वस्त्रं देहघृतं भूयात्सर्वसंपत्तिदायकम् ।।" आभूषण-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - “ॐ श्रीं। मुकुटांगदहारार्धहाराः कटकनूपुरे।
सर्वभूषणसंघातः श्रियेऽस्तु वपुषा घृतः ।।" माल्य-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - "ऊँ श्रीं। सर्वदेवस्य संतृप्तिहेतु माल्यं सुगन्धि च।
पूजाशेषं धारयामि स्वदेहेन त्वदर्चना ।।" गन्ध-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - “ॐ ह्ये । कर्पूरागरूकस्तूरीश्रीखण्डशशिसंयुतः।
गन्धपूजादिशेषो मे मण्डनाय सुखाय च।।" ताम्बूल-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - "ॐ श्रीं। नागवल्लीदलैः पूगकस्तूरीवर्णमिश्रितैः।
ताम्बूलं मे समस्तानि दुरितानि निकृन्ततु।।" चन्द्रोदय एवं छत्र-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - “ॐ श्रीं ह्रीं। मुक्ताजालसमाकीर्ण छत्रं राज्यश्रियः समम् ।
श्वेतं विविध वर्ण वा दद्याद्राज्यश्रियं स्थिराम् ।। शय्यासन, सिंहासन आदि की अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें
“ॐ ह्रीं लल। इदं शय्यासनं सर्वं रचितं कनकादिभिः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276