Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) 171 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
__“ॐ नमो आयरियाणं भगवंताणं णाणीणं पंचविहायारसुट्ठिआणं इह भगवन्तो आयरिया अवयरन्तु साहुसाहुणी सावयसावियाकयं पूअं पडिच्छन्तु सव्व सिद्धिं दिसन्तु स्वाहा ।।
उपाध्याय की मूर्ति या उनके स्तूप की प्रतिष्ठा निम्न मंत्र से तीन बार वासक्षेपपूर्वक करें -
“ऊँ नमो उवज्झायाणं भगवंताणं वारसंगपढगपाढगाणं सुअहराणं सज्झायज्झाणसत्ताणं इह उवज्झाया भगवन्तो अवयरन्तु साहुसाहुणी सावयसावियाकयं पूयं पडिच्छन्तु सव्व सिद्धिं दिसन्तु स्वाहा।"
___ साधु-साध्वी की मूर्ति या उनके स्तूप की प्रतिष्ठा निम्न मंत्र से तीन बार वासक्षेपपूर्वक करें -
“ॐ नमो सव्वसाहूणं भगवन्ताणं पंचमहव्वयधराणं पंचसमियाणं तिगुत्ताणं तवनियमनाणदंसणजुत्ताणं मक्खसाहगाणं साहुणो भगवन्तो इह अवयरन्तु भगवईओ साहुणीओ इह अवयरन्तु साहु साहुणी सावयसावियाकयं पूअं पडिच्छन्तु सव्व सिद्धिं दिसन्तु स्वाहा।।
इस प्रकार प्रतिष्ठा-अधिकार में यतिमूर्ति की प्रतिष्ठा-विधि सम्पूर्ण होती है। अब ग्रहों की प्रतिष्ठा-विधि बताते हैं। वह इस प्रकार
सर्वप्रथम प्रासाद में या गृह में बृहत्स्नात्रविधि द्वारा परमात्मा की प्रतिमा को स्नान कराएं। उसी समय प्रतिष्ठा हेतु नवग्रहों की मूर्तियाँ भी स्थापित करें। ऊपर कहे गए नवग्रहों में से एक या दो या तीन या चार या पाँच अथवा अपनी आवश्यकता के अनुसार ग्रहों की मूर्ति स्थापित करें। काष्ट निर्मित ग्रहों की मूर्तियों में सूर्यादि नवग्रहों की मूर्तियाँ क्रमशः लालचन्दन, चन्दन, खैर, नीम, कदम्ब, घातकी, शेफाली, बबूल एवं बैर के वृक्ष की लकड़ियों से निर्मित होती है। धातु की अपेक्षा से सूर्य आदि नवग्रहों की मूर्तियाँ क्रमशः ताँबा, चाँदी, रांगा, सीसा, सोना, लोहा, कांसा और पीतल की होती है। उनको कुण्डल, मुद्रिका आदि की स्थापना क्रमशः माणिक्य, मोती, प्रवाल (मूंगा), मरकत, पुखराज, हीरा, नीलम, गोमेद एवं वैदूर्य रत्नों से करें। उनकी मूर्तियों की स्थापना तथा प्रतिष्ठा का भी एक क्रम है। उनके
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