Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३)
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प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक- पौष्टिककर्म विधान तत्पश्चात् विद्यापीठ पर तीन बार वासक्षेप डालें। यह अधिवासना की विधि है । फिर प्रतिष्ठा - लग्नवेला के आने पर स्वर्ण-कंकण, मुद्रिका एवं दोषरहित श्वेतवस्त्र से विभूषित गुरु द्वारा गणधररूप १. सौभाग्यमुद्रा २. प्रवचन ३. परमेष्ठी ४. अंजलि ५. सुरभि ६. चक्र ७. गरुड़ एवं ८. आरात्रिक इन आठ मुद्राओं द्वारा मंत्राधिराज के पाँच प्रस्थान ( पदों) का जाप करके अन्दर प्रविष्ट श्वास के द्वारा तीन बार सकल मूलमंत्र से धूप आदि उत्क्षेपणपूर्वक समवसरण पर से वस्त्र उतरवाकर प्रतिष्ठा - कार्य करें । पूर्व में देवीप्रतिष्ठा-अधिकार में बताए गए अनुसार पच्चीस प्रकार के द्रव्यों से निर्मित वासक्षेप को द्वादश मुद्राओं से अभिमंत्रित करें। तत्पश्चात् पूर्व में बताए गए लब्धिपदों को पढ़कर वासक्षेप डालें। फिर 'ॐ वग्गु' यहाँ से लेकर प्रथम विद्यापीठ द्वारा सात बार वासक्षेपपूर्वक सभी कौड़ियों की प्रतिष्ठा करें। तत्पश्चात् द्वितीय विद्यापीठ द्वारा चौथे परमेष्ठी एवं पाँचवें परमेष्ठी से युत बाहर वाले वलय की पाँच बार वासक्षेप से प्रतिष्ठा करें। उसके बाद तीसरी विद्यापीठ द्वारा मध्यवलय की तीन बार वासक्षेप द्वारा प्रतिष्ठा करें। तत्पश्चात् चौथे विद्यापीठ द्वारा मुख्य परमेष्ठी से युक्त मध्यवलय की एक बार वासक्षेप द्वारा प्रतिष्ठा करें। फिर शतपत्रपुष्पों द्वारा या अखण्डित चावलों से मूलमंत्र का एक सौ आठ बार जाप करें। उसके बाद समवसरण - स्तोत्र एवं परमेष्ठी - मंत्र - स्तोत्र द्वारा चैत्यवंदन करें । दिक्पाल का विसर्जन पूर्व की भाँति ही करें तथा निम्न मंत्रपूर्वक प्रतिष्ठा - देव का विसर्जन करें
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“ॐ विसर - विसर प्रतिष्ठादेवते स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा । " समवशरण - पूजा गोपनीय होने से यहाँ नहीं कही गई है, उसे सूरिमंत्रकल्प से जानें इस प्रकार प्रतिष्ठा-अधिकार में देवतावसर-समवसरण की प्रतिष्ठा पूर्ण होती है ।
मंत्रपट्ट धातु से, अर्थात् सोना, चाँदी, ताँबे या काष्ठ से निर्मित होता है। मंत्रपट्ट को मिश्रित पंचामृत से स्नान कराकर, गन्धोदक एवं शुद्धजल से धोकर तथा यक्षकर्दम का लेप करके पच्चीस वस्तुओं से निर्मित वासक्षेप द्वारा उसकी प्रतिष्ठा करनी चाहिएं। मंत्रपट्ट
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