Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३)
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प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान .
“ॐ नमो पयाणुसारीणं से कविलपर्यंत सूरिमंत्र बोलें। तत्पश्चात् पुष्प चढ़ाएं। धूप उत्क्षेप करें और वासक्षेप डालें। फिर गुरु बिम्ब पर केसर, कपूर, गोरोचन से हस्तलेप करे और मदनफलसहित कंकण-बन्धन करें। कंकण-बन्धन का मंत्र यह है -
“ऊँ नमो खीरासवलद्धीणं, ऊँ नमोमहुयासवलद्धीणं ऊँ नमो संभिन्नसोईणं ऊँ नमो पयाणुसारीणं ऊँ नमो कुट्ठबुद्धीणं जंमियं विज्ज पउंजामि सामे विज्जा पसिब्भओ ऊँ अवतर-अवतर सोमे-सोमे कुरु-कुरु वग्गु-वग्गु निवग्गु-निवग्गु सुमणे सोमणसे महुमहुरे कविल ऊँ कक्षः स्वाहा।"
कौसुम्भसूत्र (केसरीसूत्र), मदनफल एवं अरिष्ट से निर्मित कंकण का बन्धन कण्ठ, बाहु, भुजा एवं चरणों में करें। फिर गुरु अधिवासनामंत्र एवं मुक्तासुक्ति मुद्रा से मस्तक, दोनों स्कन्ध (कंधे) एवं दोनों जानु (पैर) रूप पाँच अंगों को सात बार स्पर्श करते हैं। अधिवासना का मंत्र निम्नांकित है -
“ॐ नमः शान्ते हूँ यूँ हूँ सः।" इसके बाद धूप-उत्क्षेपण करें। फिर गुरु पुनः परमेष्ठीमुद्रा से परमात्मा का आह्वान करते हैं। आह्वान मंत्र निम्न है -
“ॐ नमोर्हत्परमेश्वराय चतुर्मुखपरमेष्ठीने त्रैलोक्यगताय अष्टदिग्भागकुमारीपरिपूजिताय देवाधिदेवाय दिव्यशरीराय त्रैलोक्यमहिताय आगच्छ-आगच्छ स्वाहा।
फिर नंद्यावर्त्त की पूजा करें। चलबिम्ब पर नंद्यावर्त्त-विधि करते हैं। इसके लिए नंद्यावर्त्त के ऊपर प्रतिमा को स्थापित करें। बिम्ब यदि स्थिर हो, तो फिर निश्चलबिम्ब के आगे और वेदी के मध्यभाग में, अर्थात् स्थिरबिम्ब एवं वेदी के बीच की जगह में नंद्यावर्त्त-पूजा करें। उसकी विधि यह है - गुरु आसन पर बैठकर नंद्यावर्त की पूजा करते हैं।
___ नंद्यावर्त्त-आलेखन की विधि - कर्पूरमिश्रित चन्दन आदि सात लेपों से लिप्त श्रीपर्णी के पट्ट पर कपूर, कस्तूरी, गोरोचन मिश्रित कुंकुमरस से सर्वप्रथम प्रदक्षिणाकार नवकोणयुक्त नंद्यावर्त्त का आलेखन
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