Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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स।।
आचारदिनकर (खण्ड-३) 137 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
"त्वद्वन्ध्यपंचशरकेतनभावक्लृप्तं कर्तुं मुधा भुवननाथ निजपराधम्।
सेवां तनोति पुरतस्तव मीनयुग्मं श्राद्धैः पुरो विलिखितोरुनिजांगयुक्ता।।"
___ फिर निम्न छंद द्वारा बिम्ब के आगे चन्दन या सोने-चाँदी का स्वस्तिक रखें या अक्षत का स्वस्तिक आलेखित करें -
"स्वस्तिभूगगननागविष्टपेषूदितं जिनवरोदयेक्षणात्। स्वस्तिकं तदनुमानतो जिनस्याग्रतो बुधजनैर्विलिख्यते।।
तत्पश्चात् निम्न छंद द्वारा बिम्ब के आगे चन्दन या सोने-चाँदी का नंद्यावर्त्त रखें या अक्षत का नंद्यावर्त्त आलेखित करें -
"त्वत्सेवकानां जिननाथ दिक्षु सर्वासु सर्वे निधयः स्फुरन्ति। अतः चतुर्धानवकोणनंद्यावर्त्तः सतां वर्तयतां सुखानि ।।
तत्पश्चात् अष्टमंगलों को गन्ध, पुष्प, फल एवं पकवान से पूजें। फिर हाथ में पुष्पमाला लेकर निम्न छंदपूर्वक जिनबिम्ब पर चढ़ाएं। यह अष्टमंगलों की स्थापना की विधि है -
"दर्पणभद्रासन वर्द्धमानपूर्णघटमत्स्ययुग्मैश्च। नंद्यावर्त्तश्रीवत्सविस्फुटस्वस्तिकैर्जिनार्चासु।।
फिर हाथ में पुष्प ग्रहण कर निम्न छंदपूर्वक बिम्ब को स्नात्रपीठ से उठाकर यथास्थान रख दें और यदि स्थिर बिम्ब हो तो "आज्ञाहीनं क्रियाहीनं“ मंत्रपूर्वक पुष्प चढ़ाएं -
"देवेन्द्रैः कनकाद्रिमूर्द्धनि जिनस्नात्रेण गन्धार्पणैः पुष्पैर्भूषणवस्त्रमंगलगणैः संपूज्य मातुः पुनः। आनीयान्यतएवमत्र भविका बिम्बं जगत्स्वामिनस्तत्कृत्यानि समाप्य कल्पितमतः संप्रापयन्त्यास्पदम् ।।
तत्पश्चात् पूर्व की भाँति ही आरती, मंगलदीपक आदि की विधि पूजा-विधि के समान ही करें। फिर चैत्यवंदन करके साधुओं को वन्दन करें। दिक्पाल, क्षेत्रपाल, ग्रहों आदि के विसर्जन हेतु निम्न छंद बोलें -
__"यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्। सिद्धिं दत्त्वा च महतीं पुरागमनाय च ।।"
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