Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) 138 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
उपर्युक्त छंदपूर्वक पुष्प चढ़ाकर ग्रह, दिक्पाल, क्षेत्रपाल, आदि का विसर्जन करें - यह बृहत्स्नात्र की विधि है।
नूतन बिम्ब की प्रतिष्ठा के समय या सभी प्रतिष्ठाओं के समय, शान्तिक, पौष्टिक-कर्म के समय और पों एवं महोत्सवों के समय, तीर्थयात्रा में तथा नए बिम्ब की प्राप्ति होने पर बृहत्स्नात्रविधि करनी ही चाहिए। अन्य क्रियाओं के सम्बन्ध में कोई विकल्प हो सकता है, परन्तु स्नात्रविधि में कोई विकल्प नहीं होता है। यह बृहत्स्नात्रविधि की विशेषता है। इस प्रकार द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव के अनुसार तीन दिन, पाँच दिन या सात दिन तक नंद्यावर्त सहित बृहत्स्नात्रविधि से पूजा करें। तत्पश्चात् नंद्यावर्त्त का विसर्जन करें।
नंद्यावर्त्त-विसर्जन की विधि यह है -
पूर्व क्रमानुसार सर्ववलय के देवताओं की पूजा करें। फिर बाहर के वलय में स्थित देवताओं के प्रति ‘यान्तुदेवगणा सर्वे" यह कहकर निम्न मंत्रपूर्वक नवग्रह एवं क्षेत्रपाल का विसर्जन करें -
"ऊँ ग्रहाः सक्षेत्रपालाः पुनरागमनाय स्वाहा।" ।
तत्पश्चात् उसके मध्य वलय में स्थित देवताओं की पूजा करें। फिर बाहर के वलय में स्थित देवताओं के प्रति ‘यान्तुदेवगणा सर्वे' यह कहकर निम्न छंदपूर्वक क्रमशः दिक्पाल, शासनयक्षिणी, इन्द्राणी, इन्द्र, लोकान्तिकदेव, विद्यादेवी, जिनमाता, पंचपरमेष्ठी एवं रत्नत्रय, वाग्देवता, ईशानेन्द्र एवं सौधर्मेन्द्र का विसर्जन करें -
ॐ दिक्पालाः पुनरागमनाय स्वाहा। ऊँ शासन यक्षिण्यः पुनरागमनाय स्वाहा। ऊँ सर्वेन्द्र देव्यः पुनरागमनाय स्वाहा। ऊँ सर्वेन्द्रा पुनरागमनाय स्वाहा। ऊँ सर्वलोकान्तिका पुनरागमनाय स्वाहा। ऊँ विद्यादेव्य पुनरागमनाय स्वाहा। ऊँ जिनमातारः पुनरागमनाय स्वाहा। ॐ पंचपरमेष्ठीसरत्नत्रयाः पुनरागमनाय स्वाहा। ऊँ वाग्देवते पुनरागमनाय स्वाहा। ॐ ईशानेन्द्र पुनरागमनाय स्वाहा।
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