Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) 139 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान .
ऊँ सौधर्मेन्द्र पुनरागमनाय स्वाहा।
तत्पश्चात् “ॐ ह्रीं श्रीपरमदेवतासन परमेष्ट्यधिष्ठान श्री नंद्यावर्त्त पुनरागमनाय स्वाहा। “आज्ञाहीनं क्रियाहीनं." मंत्रपूर्वक हाथ जोड़कर नंद्यावर्त्त का विसर्जन करें। यह नंद्यावर्त्त-विसर्जन की विधि है।
अब कंकण-मोचन की विधि बताते हैं - एक वर्ष में किया जाने वाला कंकण-मोचन उत्कृष्ट, छ: मास में किया जाने वाला कंकण-मोचन मध्यम एवं एक मास, एक पक्ष, दस दिन, सात दिन या तीन दिन में किया जाने वाला कंकण-मोचन जघन्य माना जाता है। परमात्मा के आगे दो पीठों पर क्षेत्रपाल एवं ग्रहों सहित दिक्पालों की स्थापना करें। बृहत्स्नात्रविधि से जिनप्रतिमा को पंचामृत स्नान कराएं
और उसी प्रकार सर्व औषधियों के जल से परमात्मा की स्नात्रपूजा करें। तत्पश्चात् बृहत्स्नात्रविधि के अन्तिम श्लोक "मेरुश्रृंग." बोलते हुए एक सौ आठ शुद्ध जल के कलशों से स्नान कराएं। नानाविध गन्धों से जिनबिम्ब का विलेपन करें और पूर्ववत् पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य से पूजा करें। फिर लघुस्नात्रपूजा के अनुसार पूर्ववत् दिक्पाल एवं सक्षेत्रपाल ग्रहों की पूजा करें। तत्पश्चात् चार स्तुतियों से चैत्यवंदन करें और शान्तिस्तव का पाठ करें। फिर कंकण-मोचन एवं प्रतिष्ठादेवता के विसर्जन के लिए मैं कायोत्सर्ग करता हूँ - ऐसा कहकर अन्नत्थसूत्र बोलकर कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग में चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करें एवं कायोत्सर्ग पूर्ण करके प्रकट रूप से चतुर्विंशतिस्तव बोलें। फिर श्रुतदेवता, शान्तिदेवता, क्षेत्रदेवता, भुवनदेवता, शासनदेवता एवं वैयावृत्यकर देवों की आराधना के लिए कायोत्सर्ग एवं स्तुति पूर्व की भाँति ही करें। तत्पश्चात् सौभाग्यमुद्रा से जिनबिम्ब पर निम्न मंत्र का न्यास करें -
“ॐ अवतर अवतर सोमे सोमे कुरू-कुरू वग्गु-वग्गु निवग्गु-निवग्गु सोमे सोमणसे महुमहुरे कविल ऊँ कः क्षः स्वाहा।"
मंत्र का न्यास कर एवं परमेष्ठीमंत्र बोलकर मंगलगीत, नृत्य एवं वाद्य-ध्वनियों के बीच मदनफल-अरिष्ट आदि से युक्त कंकण बिम्ब पर से उतारकर सधवास्त्रियों के हाथ में दें। फिर जिनबिम्ब पर
जनबिम्ब पर अवतर अमहुमहुरे कापात्र बोलकर
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