Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) 143 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
सुवर्णवर्णसंकाशो भोगदायुः प्रदो विदुः। देवमन्त्री महातेजा गुरुः शान्तिं प्रयच्छतु।।५।।
काशकुन्देन्दुसंकाशः शुक्रो वै ग्रहपुंगवः। शान्तिं करोतु वो नित्यं भृगुपुत्रो महायशाः ।।६।।
नीलोत्पलदलश्यामो वैडूर्यांजनसप्रभः। शनैश्चरो विशालाख्यः सदा शान्तिं प्रयच्छतु।७।।
__ अतसीपुष्पसंकाशो मेचकाकारसन्निभः। शान्तिं दिशतु वो नित्यं राहुश्चन्द्रार्कमर्दनः ।।८।।
सिन्दूररुधिराकारो रक्तोत्पलसमप्रभः। प्रयच्छतु सदा शान्तिं केतुरारक्तलोचनः।।६।।
वर्णसंकीर्तनैरित्थं स्तुताः सर्वे नवग्रहाः। शान्तिं दिशन्तु मे सम्यक् अन्येषामपि देहिनाम् ।।१०।।
एवं शान्तिं समायोज्य पूजयित्वा यथाविधि। तद्भक्तलिङ्गिनां पश्चादोजनं दानमाचरेत् ।।११।।
स्वल्पमन्नं ग्रहस्योक्तमादौ दत्वा विचक्षणः। पश्चात्कामिकमाहारं दत्वां तं भोजयेन्नरः।।१२।।
___ नानाभक्ष्यविशेषैश्च तथा मिष्टान्नपानकैः। यावद्भवन्ति संतुष्टास्तावत्संभोज्य पूजयेत् ।।१३।।
तेषां संतोषमात्रेण ग्रहास्तोषमुपागताः। आतुरस्यार्तिहरणं कुर्वन्ति मुदिताः सदा।।१४।।
फिर कुंकुम, कर्पूर, कस्तूरी एवं गोरोचन से ग्रहों को सुशोभित करें। कणयर, पुष्प, कमल, जासूद, चम्पक, सेवन्ती, जाइ, वेउल, कुन्द एवं नीली - इन नौ पुष्पों से नवग्रहों की पूजा करें। द्राक्षा, इक्षु, सुपारी, नारंगी, करूण, बीजपूर, खजूर, नारियल, दाडिम (अनार) - ये नौ फल चढ़ाएं। शक्ति के अनुसार (कम या ज्यादा) नैवेद्य चढ़ाएं। धूपपूजा, वासक्षेपपूजा एवं कर्पूरपूजा आदि अवश्य करें। मूलमंत्र से बलि को अभिमंत्रित करके भूतबलि दें। फिर दिक्पाल की पूजा करें। तत्पश्चात् नमक एवं जलधारा द्वारा नजर उतारें। आरती, मंगलदीपक एवं देववन्दन करें। फिर "प्रतिष्ठादेवता के विसर्जन एवं कंकण-मोचन के लिए मैं कायोत्सर्ग करता हूँ" - यह कहकर अन्नत्थसूत्र बोलकर
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