Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३)
149 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक- पौष्टिककर्म विधान
५. गणधरमुद्रा के दर्शन कराएं तथा तीन बार सूरिमंत्र द्वारा उसकी स्थापना करें। “ऊँ स्थावरे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा' - इस मंत्र से कलश को वस्त्र से आच्छादित करें। उसके ऊपर पूर्व की भाँति जम्बीर, आदिफल, सप्तधान्य, पुष्प एवं पत्र चारों तरफ डालें। फिर निम्न छंदपूर्वक कलश को उतारें - “दुष्टसुरासुररचितं नरैः तद्गच्छत्वतिदूरंभविक कृतारात्रिक विधानैः ।। "
कृतं दृष्टिदोषजं विघ्नम् ।
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फिर चैत्यवंदन करें। तत्पश्चात् " अधिवासना ( प्रतिष्ठा ) देवी की आराधना के लिए मैं कायोत्सर्ग करता हूँ' यह कहकर अन्नत्थसूत्र बोलकर कायोत्सर्ग करें । कायोत्सर्ग में चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करें । कायोत्सर्ग पूर्ण होने पर पूर्ववत् अधिवासनादेवी की स्तुति बोलें, किन्तु उसमें जिनबिम्ब के स्थान पर जिनकलश शब्द का उच्चारण करें ।
तत्पश्चात् शान्तिदेवी, अम्बिकादेवी, समस्त वैयावृत्त्यकर देवों के आराधनार्थ कायोत्सर्ग एवं स्तुति पूर्ववत् करें। पुनः शान्ति - बलि प्रदान करें। फिर शक्रस्तव द्वारा चैत्यवंदन करें तथा बृहत् शान्तिस्तव बोलें। तत्पश्चात् "प्रतिष्ठादेवता के आराधनार्थ मैं कायोत्सर्ग करता हूँ" - ऐसा कहकर अन्नत्थसूत्र बोलकर कायोत्सर्ग करें।
कायोत्सर्ग में चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करें । कायोत्सर्ग पूर्ण होने पर प्रकट रूप से चतुर्विंशतिस्तव तथा निम्न स्तुति बोलें " यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः सर्वा सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । श्री जिन बिम्बं प्रविशतु सदेवता सुप्रतिष्ठमिदम् ।। “ आचार्य स्वयं अंजलि में अक्षत ले करके और जन-समुदाय भी उसी प्रकार समीप में ही अंजलि में अक्षत ग्रहण करते हुए जिनकलश को बधा करके मंगलगाथा का पाठ करें। मंगलपाठ “नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः " बोलकर बोलें
" जिस प्रकार से समग्र लोकाकाश में स्वर्ग प्रतिष्ठित हैं, उसी प्रकार से जब तक चन्द्र और सूर्य रहें, तब तक यह कलश भी सुप्रतिष्ठित रहे । जिस प्रकार से समग्र लोकाकाश में मेरु सुप्रतिष्ठित है, उसी प्रकार से जब तक चन्द्र और सूर्य रहें, तब तक यह कलश
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