Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
View full book text
________________
आचारदिनकर (खण्ड-३) 166 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान नरसिंहादि, वीरपुरपूजित नाग आदि एवं देशपूजित गोगा आदि-इन सबकी प्रतिष्ठा-विधि एक जैसी ही है, किन्तु गृह-क्षेत्रपाल, कपिल, गौर, कृष्णादि की प्रतिष्ठा गृह में, बटुकनाथ की प्रासाद में, हनुमान की श्मशान में, नृसिंहादि की पुरपरिसर में, पुरपूजितनागादि एवं देशपूजित गोगा आदि की उन-उन के स्थानों पर होती है। इन सबकी प्रतिष्ठा की विधि एवं मूल मंत्रों की जानकारी उन-उन की आम्नाय को मानने वाले लोगों से प्राप्त करें। प्रतिष्ठा मूलमंत्र द्वारा ही होती है। इस प्रकार प्रतिष्ठा-अधिकार में क्षेत्रपाल आदि की प्रतिष्ठा-विधि संपूर्ण होती है।
अब गणपति की प्रतिष्ठा-विधि बताते हैं। वह इस प्रकार हैंप्रासाद स्थित गणपति की मूर्ति पूजनीय होती हैं एवं विद्या गणेश धारण करने के योग्य होते हैं। गुरु के उपदेश विशेष से दो भुजा, चारभुजा, छ: भुजा, नौ भुजा, अठारह भुजा एवं एक सौ आठ भुजा रूप गणपति अनेक प्रकार के होते हैं। उन सबकी प्रतिष्ठा-विधि एक जैसी ही है। गणपतिकल्प में उनकी मूर्ति सोने, चाँदी, तांबा, जस्ता (रांगा), काँच, स्फटिक, प्रवाल, पद्मराग, चन्दन, रक्तचन्दन, सफेद
आंकड़ा आदि वस्तुओं से निर्मित बताई गई है। इस प्रकार विविध प्रकार की वस्तुओं से निर्मित मूर्ति विविध फल देने वाली तथा आनंद, सुख एवं संतुष्टि देने वाली होती है। उनका प्रभाव रहस्यमय है, उसे गुरुगम से जानें। पूर्व में कहे गए अनुसार उनकी स्थापना करें तथा निम्न मूलमंत्र से स्वर्णमाक्षिका (एक प्रकार का खनिज पदार्थ) से स्नान
कराएं -
"ऊँ गां गी गू गौं गः गणपतये नमः।
वासक्षेप-पूजा के स्थान पर मूलमंत्रपूर्वक तीन-तीन बार सर्वांग पर सिन्दूर लगाएं। फिर एक सौ आठ लड्डू चढ़ाएं। इस प्रकार प्रतिष्ठा करें तथा अंजलि बनाकर निम्न स्तुति बोलें -
"जय-जय लम्बोदर परशुवरदयुक्तापसव्यहस्तयुग। सव्यकरमोदकाभयधरयावकवर्णपीतलसिक।। मूषकवाहनपीवरजंघाभुजबस्तिलम्बिगुरुजठरे। वारणमुखैकरद वरद सौम्य जयदेव गणनाथ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org