Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) 157 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
इस प्रकार प्रतिष्ठा-अधिकार में परिकर आदि की प्रतिष्ठा-विधि समाप्त होती है। अब देवी की प्रतिष्ठा-विधि बताते हैं -
देवी तीन प्रकार की होती है १. प्रासाददेवी २. संप्रदायदेवी एवं ३. कुलदेवी। प्रासाददेवी-पीठ के उपपीठ पर, क्षेत्र के उपक्षेत्र पर, गुफा स्थित, भूमि स्थित एवं प्रासाद स्थित लिंगरूप या स्वयं भूतरूप या मनुष्य निर्मित रूप में होती है। संप्रदायदेवी - अम्बिका, सरस्वती, त्रिपुरा, तारा आदि गुरु द्वारा उपदिष्ट मंत्र की उपासना के लिए होती है। कुलदेवी- चण्डी, चामुण्डा, कण्टेश्वर सत्यका, सुशयना, व्याघ्रराजी आदि देवियों की प्रतिष्ठा भी देवी-प्रतिष्ठा की भाँति ही होती है। इस विधि में सर्वप्रथम प्रतिष्ठा कराने वाला ग्रहशान्तिक-पौष्टिक-कर्म करें। तत्पश्चात् प्रासाद या गृह में बृहत्स्नात्रविधि द्वारा स्नात्रपूजा करें। देवी के प्रासाद में ग्रह-प्रतिमा को ले जाकर स्नात्र करें। तत्पश्चात् पूर्वोक्त विधि से भूमिशुद्धि करें। वहाँ पंचरत्न रखें तथा उसके ऊपर कदम्ब-काष्ट का पीठ स्थापित करें। उस पीठ पर देवी की स्थापना करें। स्थिर प्रासाद की देवी-प्रतिमा को तो कुलपीठ के ऊपर ही पंचरत्न न्यासपूर्वक स्थापित करें। तत्पश्चात् बारह-बारह अंजलिप्रमाण सभी धान्यों को मिलाकर उनके (नैवेद्य के) द्वारा देवी की प्रतिमा को प्रसन्न करें। इसका मंत्र निम्नांकित है -
“ॐ श्रीं सर्वान्नपूर्णे सर्वान्ने स्वाहा।'
तत्पश्चात् पूर्वोक्त लक्षणों से युक्त चार स्नात्रकारों को आमंत्रित करें। आचार्य और स्नात्रकार कंकणसहित सदशवस्त्र एवं मुद्रा (अंगूठी) से युक्त होने चाहिए। फिर आचार्य स्वयं के और उनके (स्नात्रकारों के) अंगों की रक्षा निम्न मंत्रपूर्वक तीन-तीन बार करें।
जैसे - - ऊँ ह्रीं नमो ब्रह्मानि हृदये (हृदय पर)। ऊँ ह्रीं नमो वैष्णवि भुजयोः (दोनो भुजाओं पर)। ॐ ह्रीं नमः सरस्वति कण्ठे (कंठ पर)। ऊँ ह्रीं नमः परमभूषणे मुखे (मुख पर)। ऊँ ह्रीं नमः सुगन्धे नासिकयोः (नासिका पर)। ऊँ ह्रीं नमः श्रवणे कर्णयोः (कानों पर)। ऊँ ह्रीं नमः सुदर्शने नेत्रयोः (नेत्रों पर)। ऊँ ह्रीं नमो भ्रामरि ध्रुवोः (भौहों पर)। ऊँ ह्रीं नमो महालक्ष्मी भाले (भाल पर)। ऊँ ह्रीं नमः प्रियकारिणि शिरसि
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