Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) 159 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
लुलायदनुजक्षयं क्षितितले विधातुं सुखं चकार रभसेन या सुरगणैरतिप्रार्थिता।
चकाररभसेन या सुरगणैरतिप्रार्थिता तनोतु शुभमुत्तमं भगवती प्रसादेन वा।।५।।
सा करोतु सुखं माता बलिजित्तापवारिणी। प्राप्यते यत्प्रसादेन बलिजित्तापवारिणी।।६।।
जयन्ति देव्याः प्रभुतामतानि निरस्तनिः संचरतामतानि। निराकृताः शत्रुगणाः सदैव संप्राप्य यां मंक्षु जयै सदैव।।७।। सा जयति यमनिरोधनकी संपत्करी सुभक्तानाम् । सिद्धिर्यत्सेवायामत्यागेऽपि हि सुभक्तानाम् ।।८।।"
इस प्रकार आठ पुष्पांजलियाँ देते हैं। तत्पश्चात् देवी के आगे भगवती-मण्डल की स्थापना करें। उसकी विधि यह है -
सर्वप्रथम षट्कोण-चक्र का आलेखन करें। उसके मध्य में सहनभुजावाली नानाविध अस्त्रों को धारण करने वाली, श्वेतवस्त्रधारी, सिंह की सवारी करने वाली भगवती का आलेखन या स्थापना या कल्पना करें। फिर षटकोण प्रारंभ से लेकर प्रदक्षिणा-क्रम से निम्न मंत्रपूर्वक छ: देवियों की स्थापना करें -
१. ऊँ ह्रीं जम्भे नमः २. ऊँ ह्रीं जम्भिन्यै नमः ३. ऊँ ह्रीं स्तम्भे नमः
४. ऊँ ह्रीं स्तम्भिन्यै नमः ५. ॐ ह्रीं मोहे नमः ६. ऊँ ह्रीं मोहिन्यै नमः।
तत्पश्चात् बाहर की तरफ वलय बनाएं तथा उसमें अष्टदल (पंखुडियाँ) बनाएं। फिर निम्न मंत्रपूर्वक उनमें प्रदक्षिणा-क्रम से क्रमशः आठ देवियों की स्थापना करें -
१. ह्रीं श्रीं ब्रह्माण्यै नमः २. ह्रीं श्रीं माहेश्वर्यै नमः ३. ह्रीं श्रीं कौमार्यै नमः ४. ह्रीं श्रीं वैष्णव्यै नमः ५. ह्रीं श्रीं वारायै नमः ६. ह्रीं श्रीं इन्द्राण्यै नमः ७. ह्रीं श्रीं चामुण्डायै नमः ८. ह्रीं श्रीं कालिकायै नमः
पुनः वलय बनाएं, उसमें सोलह पुखंडियाँ बनाकर निम्न मंत्रपूर्वक प्रदक्षिणा-क्रम से सोलह विद्यादेवियों की स्थापना करें -
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