Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) 156 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
“ॐ ह्रीं विमलवाहनाय नमः ।
फिर निम्न मंत्र से दोनो मालाधारकों पर तीन-तीन बार वासक्षेप डालें -
"पुर-पुर पुष्पकरेभ्यो नमः ।
तत्पश्चात् निम्न मंत्रपूर्वक शंखधरों पर तीन-तीन बार वासक्षेप डालें -
“ॐ ह्रीं शंखधराय नमः।
फिर निम्न मंत्रपूर्वक पूर्ण कलश पर तीन-तीन बार वासक्षेप डालें -
“ॐ पूर्ण कलशाय नमः।
तत्पश्चात् अनेक प्रकार के फल एवं नैवेद्य चढ़ाएं। पुनः बृहत्स्नात्रविधि से परमात्मा की स्नात्रपूजा करें और चैत्यवंदन करें। तदनन्तर प्रतिष्ठादेवता के विसर्जनार्थ अन्नत्थसूत्र बोलकर कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग में चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करें तथा कायोत्सर्ग पूर्ण होने पर प्रकट में चतुर्विंशतिस्तव बोलें। फिर नंद्यावर्त्त-मण्डल का विसर्जन आदि सब क्रियाएँ पूर्ववत् ही करें। इस अवसर पर अष्टाह्निकामहोत्सव करें, संघपूजा करें एवं याचकों को दान देकर संतुष्ट करें।
जलपट्ट (फलक) की प्रतिष्ठा-विधि में भी जलपट्ट के ऊपर पूर्ववत् बृहत्नंद्यावत की स्थापना करें। जलपट्ट को क्षीर-स्नान कराएं। स्थापन-स्थल पर पंचरत्न रखें तथा वस्त्र-मंत्र से वासक्षेप डालें। फिर नंद्यावर्त्त-मण्डल का विसर्जन करें। यह जलपट्ट की प्रतिष्ठा-विधि है।
तोरण-प्रतिष्ठा में बृहत्स्नात्रविधि से परमात्मा की स्नात्रपूजा करे और मुकुट-मंत्र से तथा द्वादशमुद्रा से अभिमंत्रित वासक्षेप तोरण पर डालें। मुकुट मंत्र निम्न है -
"ॐ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ........ हकार पर्यन्तं नमो जिनाय सुरपतिमुकुटकोटिसंघट्टितपदाय इति तोरणे समालोकयसमालोकय स्वाहा।
यह तोरण-प्रतिष्ठा की विधि है।
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