Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) 29 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
___“अनुग्रहकारक सिद्ध परमात्मा का स्वागत है, सिद्ध परमात्मा ज्ञान के भण्डार हैं, आनंद देने वाले हैं एवं दूसरों पर अनुग्रह करने वाले हैं।"
___तत्पश्चात् गुरु अंजलिमुद्रा से मंत्रपूर्वक पूर्व में संचित सुवर्ण-भाजन में से अर्घ देते हैं तथा पूर्व में कहे गए अनुसार बिम्ब के समक्ष निवेदन करते हैं। अर्घ देने का मंत्र निम्न है -
"ऊँ भः अर्घ प्रतिच्छन्तु पूजां गृह्णन्तु जिनेन्द्राः स्वाहा।"
उसके बाद पुनः दिक्पालों का आह्वान करें और प्रत्येक को निम्न मंत्र से अर्घ दें -
"ॐ इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह प्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ-आगच्छ इदमयं गृहाण-गृहाण स्वाहा।
इस प्रकार “सायुधाय सवाहनाय" मंत्रपूर्वक अर्घ दें। इसके बाद पुष्प से वासित जल से निम्न छंदपूर्वक चौदहवाँ अभिषेक कराएं“अधिवासितं सुमंत्रैः सुमनः किंजल्कराजितं तोयम् ।
तीर्थजलादिसुयुक्तं कलशोन्मुक्तं पततु बिम्बे।।" गुग्गुल, कुष्टमांसी, मुरा, चन्दन, अगरु, कर्पूर आदि सुगन्धित जल से निम्न छंद पूर्वक पन्द्रहवाँ अभिषेक कराएं - "गन्धांगस्नानिकया सन्मृष्टं तदुदकस्य धाराभिः ।
स्नपयामि जैनबिम्बं कर्मोघोच्छित्तये शिवदम् ।।" तत्पश्चात् वासयुक्त जल से निम्न छंदपूर्वक सोलहवाँ स्नान कराएं। वास दो प्रकार की होती है - तीव्र गंध से युक्त वास को शुक्लगंध एवं अल्प गंध से युक्त वास. को कृष्णगंध कहते हैं। सोलहवें अभिषेक का छंद इस प्रकार है - "हृद्यैराह्लादकरैः स्पृहणीयैर्मत्रसंस्कृतैर्जेनम्।
स्नपयामि सुगतिहेतोः प्रतिमामधिवासितैर्वासैः।।" सत्रहवाँ अभिषेक चंदन के जल से निम्न छंदपूर्वक कराएं - "शीतलसरससुगन्धिर्मनोमतश्चंदनद्रुमसमुत्थः।
___ चन्दनकल्कः सजलो मंत्रयुतः पततु जिन बिम्बे ।।"
तत्पश्चात् निम्न छंदपूर्वक कुंकुम से वासित जल से अठारहवाँ अभिषेक कराएं -
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