Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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विश्वान्या
आचारदिनकर (खण्ड-३) 118 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
कल्याणकल्याणकपंचकस्तुतः संभारसंभारमणीयविग्रहः । संतानसंतानवसंश्रितस्थितिः कन्दर्पकन्दर्पभराज्जयेज्जिनः ।।
विश्वान्धकारैककरापवारणः क्रोधेभविस्फोटकरापवारणः। सिद्धान्तविस्तारकरापवारणः श्रीवीतरागोऽस्तु करापवारणः।।
संभिन्नसंभिन्ननयप्रमापणः सिद्धान्तसिद्धान्तनयप्रमापणः । देवाधिदेवाधिनयप्रमापणः संजातसंजातनयप्रमापणः।।
कालापयानं कलयत्कलानिधिः कालापरश्लोकचिताखिलक्षितिः । कालापवादोज्झितसिद्धिसंगतः कालापकारी भगवान् श्रियेऽस्तु नः।।"
इन छंदों द्वारा कुसुमांजलि दें तथा निम्न छंद बोलें - "प्रकृतिभासुरभासुरसेवितोधृतसुराचलराचलसंस्थितिः। स्नपनपेषणपेषण योग्यतां बहतु संप्रति संप्रतिविष्टरः।।"
इस छंद द्वारा स्नात्रपीठ का प्रक्षालन करें। तत्पश्चात् शक्रस्तव का पाठ बोलें तथा “ऊर्ध्वाधो" छंदपूर्वक धूपोत्क्षेपण करें। पुनः हाथ में कुसुमांजलि लेकर द्रुतविलम्ब छंद के राग में निम्न छंद बोलें -
"निहितसत्तमसत्तमसंश्रयं ननु निरावरणं वरणं श्रियाम्। धृतमहः करणं करणं धृतेर्नमत लोकगुरुं कगुरुं सदा।।
सदभिनन्दननन्दनशेष्यको जयति जीवनजीवनशैत्यभाक् । उदितकंदलकंदलखण्डनः प्रथितभारतभारतदेशनः।।।
वृषविधापनकार्यपरम्परासुसदनं सदनं चपलं भुवि। अतिवसौस्वकुले परमे पदे दकमलंकमलंकमलंभुवि।।
तव जिनेन्द्र विभाति सरस्वती प्रवरपारमिता प्रतिभासिनी। न यदुपांतगताऽवति बुद्धगीः प्रवरपारमिताप्रतिभासिनी।।
सदनुकम्पन कंपनवर्जित क्षतविकारणकारणसौहृद। जय कृपावनपावनतीर्थकृत् विमलमानस मानससद्यशः ।।"
इन छंदों द्वारा कुसुमांजलि दें तथा निम्न छंद बोलें - ___ “न हि मलभरो विश्वस्वामिस्त्वदीयतनौ क्वचित् विदितमिति च प्राज्ञैः पूर्वैरथाप्यधुनाभवैः। स्नपनसलिलं स्पृष्टं सद्भिर्महामलमान्तरं नयति निधनं मायं बिम्बं वृथा तव देव हिं।।"
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