Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
View full book text
________________
आचारदिनकर (खण्ड-३) 27 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान ।
छठवां अभिषेक सहदेवी, बलाशतमूली, शतावरी, कुमारी, गुहसिंही, व्याघ्री आदि औषधियों से युक्त जल से निम्न छन्द बोलकर कराएं - “सहदेव्यादिसदौषधिवर्गेणोद्वर्तितस्य बिम्बस्य ।
संमिश्रं बिम्बोपरि पतज्जलं हरतु दुरितानि ।। सातवाँ अभिषेक मयूरशिखा, विहरक, अंकोल्ल, लक्ष्मणा आदि पवित्र मूलिकाओं से वासित जल से निम्न छंद बोलकर कराएं - “स्वपवित्रमूलिकावर्गमर्दिते तदुदकस्य शुभधारा ।
बिम्बेधिवाससमये यच्छतु सौख्यानि निपतन्ती।। आठवाँ अभिषेक कुष्टादि प्रथम अष्टकवर्ग की औषधियों से युक्त जल से निम्न छंद बोलकर कराएं - "नानाकुष्टाद्यौषधिसंमिश्रे तद्युतं पतन्नीरम् ।।
बिम्बे कृतसन्मंत्रं कर्मोघं हन्तु भव्यानाम् ।।" नवां अभिषेक मेद आदि द्वितीय अष्टकवर्ग औषधियों से वासित जल से निम्न छंद बोलकर कराएं - "मेदाद्यौषधिभेदोपरोष्टवर्गः स्वमंत्रपरिपूतः ।
जिनबिम्बोपरि निपतत् सिद्धिं विदधातु भव्यजने ।।" - यह नौ अभिषेक हुए। इसके बाद सूरि (आचार्य भगवंत) उठकर गरुड़मुद्रा, मुक्तासुक्तिमुद्रा या परमेष्ठीमुद्रा से प्रतिष्ठा कर देवताओं का आह्वान करते हैं। तत्पश्चात् बिम्ब के आगे खड़े होकर पूजा करते हैं। इसका मंत्र यह है -
__“ऊँ नमोऽर्हत्परमेश्वराय चतुर्मुखपरमेष्ठीने त्रैलोक्यगताय अष्टदिग्भागकुमारीपरिपूजिताय . देवाधिदेवाय दिव्यशरीराय त्रैलोक्यमहिताय आगच्छ-आगच्छ स्वाहा।"
तत्पश्चात् संक्षिप्त रूप में इन्द्र, अग्नि, यम, नैऋत्य, वरूण, वायु, कुबेर, ईशान, नाग एवं ब्रह्मा - इन दसों दिक्पालों का मंत्रपूर्वक आह्वान करते हैं। आह्वान का मंत्र निम्न है -
___ऊँ इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह जिनेन्द्रस्थापने आगच्छ-आगच्छ स्वाहा।"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org