Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) 108 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
प्रतिष्ठादेवता के आराधनार्थ कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग में चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करें। कायोत्सर्ग पूर्ण करके निम्न स्तुति बोलें -
। “यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः सर्वाः सर्वास्पदेषु नंदन्ति। श्रीजिनबिम्बं प्रविशतु सदेवता सुप्रतिष्ठितमिदम् ।।"
तत्पश्चात् शासनदेवी, क्षेत्रदेवी, समस्त वैयावृत्त्यकर देवताओं के आराधनार्थ कायोत्सर्ग एवं स्तुति पूर्व की भाँति ही करें। तत्पश्चात् धूप-उत्क्षेपन करें। फिर प्रतिष्ठालग्न के समय गुरु सभी लोगों को दूर करके परदा बंधवाकर बिम्ब के वस्त्र उतारे और घी से भरा हुआ पात्र बिम्ब के सामने रखे। तत्पश्चात् चाँदी की कटोरी में संचित सुरमा, घी, मधु, शर्करा की मिश्रित पिष्टी को स्वर्ण शलाका से लेकर वर्णन्यासपूर्वक प्रतिमा के नेत्रों को उद्घाटित करें तथा यह मंत्र बोले -
__"हां ललाटे। श्री नयनयोः। हृीं हृदये। रै सर्वसंधिषु। लौं प्राकारः। कुम्भकेन न्यासः।।"
- बिम्ब के सिर पर अभिमंत्रित वासक्षेप डाले। सूरिमंत्र से वासक्षेप को अभिमंत्रित करने की विधि आचार्यपद विधि के समान ही है। फिर आचार्य चन्दन एवं अक्षत से पूजित बिम्ब के दाएँ कान में सात बार मंत्र बोलें। तीन, पाँच या सात बार प्रतिष्ठामंत्रपूर्वक दाएँ हाथ से बिम्ब के चक्र को स्पर्शित करें। प्रतिष्ठामंत्र निम्न है -
“ॐ वीरे-वीरे जय वीरे सेणवीरे महावीरे जये विजये जयन्ते अपराजिते ऊँ ह्रीं स्वाहा।"
फिर दूध का पात्र चढ़ाएं, दर्पण दिखाएं और दृष्टि की रक्षा एवं सौभाग्य के स्थिरीकरण के लिए सौभाग्यमुद्रा, परमेष्ठीमुद्रा, सुरभिमुद्रा, प्रवचनमुद्रा और गरुड़मुद्रा पूर्वक निम्न मंत्र का सर्वांगों पर न्यास करें -
“ऊँ अवतर-अवतर सोमे सोमे कुरू कुरू ऊँ वग्गु-वरंगु निवग्गु-निवगु सुमणसे सोमणसे महुमहुरे ऊँ कविलकक्षः स्वाहा।।
तत्पश्चात् स्त्रियाँ बिम्ब को धान से बधाएँ। स्थिर प्रतिमा के मंत्र से (बिम्ब को) स्थिरीकरण करें। स्थिरीकरण का मंत्र निम्नांकित
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