Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) 11 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान वाले कर्म समाप्त हो जाते हैं - ऐसा जानकर सदैव जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा कराना चाहिए, जिससे जरा-मरण के चक्र से मुक्त होकर शाश्वत स्थान की प्राप्ति हो।" - प्रतिष्ठा करने का यह लाभ है।
___ तत्पश्चात् अष्टाह्निका (महोत्सव) की महिमा बताएं। गृहस्थ गुरु को वस्त्र, पात्र, पुस्तक, वसति, कंकण, मुद्रादि प्रदान करें। सभी साधुओं को वस्त्र एवं अन्न का दान दें, संघ की पूजा करें, पंचरत्न का कार्य करने वालों को वस्त्र एवं आभूषण प्रदान करें। स्नात्र कराने वालों को स्वर्ण की मेखला या कड़ा प्रदान करें। औषधि का पेषण करने (कूटने) वाली स्त्रियों एवं अंजन पीसने वाली कन्याओं को वस्त्राभूषण एवं मातृशाटिका प्रदान करें। तत्पश्चात् देश, काल आदि की अपेक्षा से तीन, पाँच, सात या नौ दिन तक प्रतिष्ठा-देवता की स्थापना एवं नंद्यावर्त्तपट्ट की रक्षा करें। वहाँ प्रतिदिन निरन्तर स्नात्रपूजा करें। अब स्नात्रपूजा की विधि बताते है -
सर्वप्रथम पूर्व में श्रावक की दिनचर्या-विधि में बताई गई अर्हत्कल्प-विधि के अनुसार परमात्मा की पूजा एवं आरती करें। जो स्वयं स्नान किए हुए हों, शुद्ध वस्त्रों को धारण किए हुए हों, हाथ में कंकण एवं सोने की मुद्रिका धारण किए हुए हों, जिन उपवीत एवं उत्तरासन को धारण किए हुए हों तथा उत्तरासनवस्त्र से मुख को आच्छादित किए हुए हों- ऐसे श्रावक स्नात्रपीठ को धोकर चल-स्थिर प्रतिमा के समक्ष अकेले या दो, तीन, चार, पाँच श्रावकों के साथ खड़े होकर करसंपुट में कुसुमांजलि रखकर स्रग्धरा छंद के राग में निम्न छंद बोलें -
“लक्ष्मीरद्यानवद्यप्रतिभपरिनिगद्याद्य पुण्यप्रकर्षोत्कर्षैराकृष्यमाणा करतलमुकुलारोहमारोहति स्म। शश्वद्विश्वातिविश्वोपशमविशदतोद्भासविस्मापनीयं, स्नात्रं सुत्रामयात्राप्रणिधि जिनविभोर्यत्समारब्धमेतत्।।
कल्याणोल्लासलास्यप्रसृमरपरमानन्दकन्दायमानं मन्दामन्दप्रबोधप्रतिनिधिकरुणाकारकन्दायमानम्। स्नात्रं श्रीतीर्थभर्तुर्धनसमयमिवात्मार्थकन्दायमानं दद्याद्भक्तेषु पापप्रशमनमहिमोत्पादकं दायमानम् ।।
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