Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) । 23 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान ..
फिर भुवनदेवता का कायोत्सर्ग करके निम्न स्तुति बोलते हैं - "ज्ञानादिगुणयुतानां नित्यं स्वाध्याय संयम रतानाम् ।
___ विदधातु भुवनदेवी शिवं सदा सर्वभूतानाम् । क्षेत्रदेवता का कायोत्सर्ग करके निम्न स्तुति बोलते हैं - “यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य साधुभिः साध्यते क्रिया।
सा क्षेत्र देवता नित्यं भूयान्नः सुखदायिनी।।" शांतिदेवता का कायोत्सर्ग करके निम्न स्तुति बोलते हैं - "उन्मृष्टरिष्टदुष्टग्रहगति दुःस्वप्न दुर्निमित्तादि।
संपादितहितसंपन्नामग्रहणं जयति शान्तेः ।। शासनदेवता का कायोत्सर्ग करके निम्न स्तुति बोलते हैं - “या पाति शासनं जैनं सद्यः प्रत्यूहनाशिनी ।
साभिप्रेतसमृद्धयर्थं भूयाच्छासन देवता ।।" अम्बिकादेवी की आराधना के लिए कायोत्सर्ग करके निम्न स्तुति बोलते हैं -
"अम्बा बालांकितांकासौ सौख्यस्यान्तं दधातु नः
__माणिक्य रत्नालंकार चित्र सिंहासन स्थिता।।"
अच्छुप्तादेवी की आराधना के लिए कायोत्सर्ग करके निम्न स्तुति बोलते हैं - ___“रसितमुच्चतुरंगमनायकं विशतु कांचनकांतिरिहाच्युता।
घृत धनुः फल कासिशरैः करैरसितमुच्चतुरंगमनायकम् ।।
___ समस्त वैयावृत्यकर देवताओं की आराधना के लिए कायोत्सर्ग करके निम्न स्तुति बोलते हैं - “सर्वे यक्षाम्बिकाद्या ये वैयावृत्यकरा जिनेः।
रौद्रोपद्रवसंघातं ते द्रुतं द्रावयन्तु नः।।" तत्पश्चात् संपूर्ण नमस्कारमंत्र बोलकर क्रमशः शक्रस्तव, अर्हणादिस्तोत्र एवं जयवीयरायसूत्र बोलें। फिर विधिकारक गुरु स्वयं के सम्पूर्ण देह की रक्षा करते हैं। उसकी विधि यह है -
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