Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
View full book text
________________
आचारदिनकर (खण्ड-३) 22 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान प्रतिष्ठाकारक, जो कृत उपवासी हो, बिना सिले हुए इसिओं से युक्त श्वेतवस्त्र पहने हुए हो, कंकण आदि अलंकारों से सुशोभित हो, स्वर्ण सावित्रीक मुद्रिका को धारण किए हुए हो, तथा चारों स्नात्रकार चतुर्विध संघ की उपस्थिति में सभी दिशाओं में भूतबलि देते हैं अर्थात् बाकुले एवं पूए आदि सभी वस्तुएँ चारों दिशाओं में डालते हैं। भूतबलि का मंत्र निम्न है -
___“ऊँ सर्वेपि सर्वपूजाव्यतिरिक्ता भूतप्रेतपिशाचगणगंधर्वयक्षराक्षसकिन्नरवेतालाः स्वस्थानस्था अमुं बलिं गृह्णन्तु, सावधानाः सुप्रसन्नाः विघ्न हरन्तु मंगलं कुर्वन्तु।"
इस मंत्र से भूतबलि देकर प्रतिष्ठाकारक गुरु स्नात्रकारों को देह की रक्षा कवच-मंत्र से करवाते हैं। वह कवचमंत्र इस प्रकार है -
“ॐ नमो अरिहंताणं शिरसि, ऊँ नमो सिद्धाणं मुखे, ऊँ नमो आयरियाणंसर्वांगे, ऊँ नमो उवज्झायाणं आयुधम्, ऊँ नमो लोए सव्वसाहूणं वज्रमयं पंजरम् ।
इस प्रकार चंदन से लिप्त दाएँ हाथ से कवच बनाएं, अर्थात् रक्षा करें। फिर स्नात्र करने वाले पूर्व में स्थापित किए गए अन्य प्रतिष्ठित बिम्ब की पूजा करते हैं तथा पूर्व वर्णित लघुस्नात्रविधि से स्नात्र एवं आरती करते हैं। तत्पश्चात् स्नात्रकारसहित प्रतिष्ठाकारक चतुर्विध संघ के साथ जिनस्तुति से गर्भित चैत्यवंदन करते हैं। फिर शान्तिनाथ भगवान् की आराधना के लिए कायोत्सर्ग करते हैं। कायोत्सर्ग में चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करके निम्न स्तुति बोलते हैं - - “श्रीमते शान्तिनाथाय नमः शान्ति विधायिने।
त्रैलोक्यस्यामराधीश मुकुटाभ्यर्चितांघ्रये ।।" श्रुतदेवता आदि सभी के कायोत्सर्ग में नमस्कार-मंत्र का चिन्तन करते हैं। श्रुत देवता का कायोत्सर्ग पूर्ण होने पर निम्न स्तुति बोलते हैं -
“यस्याः प्रसाद परिवर्धित शुद्धबोधाः पारं व्रजन्ति सुधियः श्रुततोयराशेः।।
__ सानुग्रहामयि समीहितसिद्धयेऽस्तु संर्वज्ञशासनरता श्रुतदेवतासौ।।"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org