Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३)
6 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक- पौष्टिककर्म विधान
द्वारा नवीन बिम्ब की प्रतिष्ठा कराएं। अपने नाम के आधार पर आगे बताई गई सात प्रकार की शुद्धिपूर्वक जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा कराएं। अब गृह - बिंब के लक्षण बताए जा रहे हैं
एक अंगुल की प्रतिमा श्रेष्ठ होती है। दो अंगुल की प्रतिमा धन का नाश करने वाली होती है। तीन अंगुल की प्रतिमा सिद्धि देने वाली होती है । पाँच अंगुल वाली प्रतिमा वृद्धिकारक होती है । छः अंगुलवाली प्रतिमा उद्वेगकारक होती है। सात अंगुल वाली प्रतिमा पशुधन की वृद्धिकारक होती है। आठ अंगुल वाली प्रतिमा हानिकारक होती है। नौ अंगुल वाली प्रतिमा पुत्र की वृद्धि करने वाली होती है । दस अंगुल वाली प्रतिमा धन का नाश करने वाली होती है एवं ग्यारह अंगुल वाली प्रतिमा सर्वकामनाओं की पूर्ति करने वाली होती है। इस तरह बताए परिमाणानुसार ही गृहचैत्य में विषम अंगुल का बिम्ब स्थापित करें। इससे अधिक परिमाण वाले बिम्ब को गृह में स्थापित न करे यह गृहबिम्ब के लक्षण हैं ।
सात प्रकार की विशुद्धि इस प्रकार है १. नाडी - अविरोध २. षटाष्टकादि - परिहार ३. योनिअविरोध ४. वर्गादि- अविरोध ५. गण - अविरोध ६. लभ्यालभ्यसम्बन्ध ७. राशि-अधिपति-अविरोध ।
इसके लिए परमात्मा के जन्म नक्षत्रों एवं राशियों को बताते । वे इस प्रकार हैं- १. उत्तराषाढ़ा २. रोहिणी ३. मृगशीर्ष ४. पुनर्वसु ५. मघा ६. चित्रा ७. विशाखा ८. अनुराधा ६. मूल १०. पूर्वाषाढ़ा ११. श्रवण १२. शतभिषा १३. उत्तरभाद्रपद १४. रेवती १५. पुष्य १६. भरणी १७. कृत्तिका १८. रेवती १६. अश्विनी २०. श्रवण २१. अश्विनी २२. चित्रा २३. विशाखा एवं २४. उत्तराफाल्गुनी - ये अनुक्रम से चौबीस तीर्थंकरों के जन्म-नक्षत्र हैं ।
इसी प्रकार १. धनु २. वृषभ ३. मिथुन ४. सिंह ५. कन्या ६. तुला ७. तुला ८. वृश्चिक ८. धनु १०. धनु
कुंभ
१५. कर्क
१३. मीन १४. कर्क १८. मीन १८. मेष २०. मकर
२१. मेष
११. मकर
१२. १६. मेष १७. वृषभ
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