Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) 13 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान हस्तलेप के लिए केसर, कर्पूर, गोरोचन आदि लाएं। घी से पूर्ण एक बर्तन, अंजन-शलाका के लिए नेत्रांजन रूप सुरमा (एक खनिज पदार्थ), घी, मधु एवं शर्करा का संग्रह करें। भंभा, बुक्का, ताल, कांस्यताल, मृदंग, पट्टह, भेरी, झल्लरी द्रगण, दुर्दुर, वीणा, पणव, श्रृंग, मुखहुडुक्क, लघुपटह, त्रंबक, धूमला, प्रियवादिका, तिमिला, शंख आदि वांदित्र लाएं। भोजन का एक पूर्ण थाल, मालपुओं से युक्त ढंके हुए पाँच सकोरे, गाय का गोबर, गोमूत्र, घी, दही, दूध, दर्भरूप गव्यांग, दर्भ से युक्त जल, स्नान कराने के लिए पंचगव्य लाएं। हाथी के दांतों से या बैल की सींगों से खोदकर निकाली गई मिट्टी, वाल्मिक की मिट्टी, राजद्वार की मिट्टी, पर्वत की मिट्टी, नदी के दोनों तटों की एवं नदी का जहाँ संगम होता हो, वहाँ की मिट्टी, पद्मसरोवर की मिट्टी - इन सब मिट्टियों का मिश्रण, पाँच सोने के कलश, उसके अभाव में चाँदी, तांबे या मिट्टी के कलश, तीन सौ छत्तीस क्रियाणक से बद्ध पोटलियाँ लाएं। प्रतिष्ठा में उपयोगी तीन सौ छत्तीस क्रियाणकों (किराने की वस्तुओं) के नाम इस प्रकार बताए गए हैं -
मदनादिगण - १. मदनफल २. मधुयष्टी ३. तुम्बी ४. निम्ब ५. महानिम्ब ६. बिम्बी ७. इन्द्रवारुणी ८. स्थूलेन्द्रवारुणी ६. कर्कटी १०. कुटज ११. इन्द्रयव १२. देवदाली १३. विडंगफल १४. वेतस १५. निचुल १६. चित्रक १७. दती १८. उन्दरकर्णी १६. कोशातकी २०. राजकोशातकी २१. करंज २२. चिरबिल्ल २३. पिप्पली २४. पिप्पलीमूल २५. सैन्धव २६. सौवर्चल २७. चिरबिल्ली २८. कृष्ण सौवर्चल २६. बिडलवण ३०. पाक्यलवण ३१. समुद्रलवण ३२. रोमक ३३. स्वर्जिका ३४. वचा ३५. एलाक्षुद्रेला ३७. बृहदेला ३८. त्रुटि ३६. यवक्षार ४०. महात्रुटि ४१. सर्षप ४२. आसुरी ४३. कृष्णसर्षप ।
टी १०.
निचुल १६
की २१
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