Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) 3 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान स्तूप की प्रतिष्ठा की जाती है। गृह-प्रतिष्ठा में सूर्य, चन्द्र, ग्रह, तारा, नक्षत्र आदि की प्रतिष्ठा की जाती है। चतुर्निकाय देव-प्रतिष्ठा में दिक्पाल, इन्द्र आदि सर्व देव, शासन-देवता, यक्ष आदि की प्रतिष्ठा की जाती है। गृहप्रतिष्ठा-विधि में भित्ति, स्तम्भ, देहली, द्वार, श्री हट्टतृण गृहादि की प्रतिष्ठा भी अन्तर्निहित है। वापी आदि जलाशयों की प्रतिष्ठा में बावड़ी, कुंआ, तालाब, झरना, तड़ागिका, विवरिका आदि धर्म के कार्यों में काम लगने वाले जलाशय की प्रतिष्ठा-विधि को सम्मिलित किया गया है। वृक्ष-प्रतिष्ठा में वाटिका (उद्यान), वनदेवता आदि की प्रतिष्ठा की जाती है। अट्टालिकादि भवन-प्रतिष्ठा में मृत्यु के पश्चात् शरीर के दाह-संस्कार आदि की भूमि पर चरण-प्रतिष्ठा आदि भी समाहित है। दुर्ग-प्रतिष्ठा में दुर्ग, मुख्यमार्ग, यंत्रादि की प्रतिष्ठा की जाती है। भूमि आदि की अधिवासना प्रतिष्ठा-विधि में पूजाभूमि, संवेशभूमि, आसनभूमि, विहारभूमि, निधि (संचय) भूमि, क्षेत्रभूमि आदि भूमियों एवं जल, अग्नि, चूल्हा (चुल्ली), बैलगाड़ी (शकटी), वस्त्र, आभूषण, माला, गंध, तांबूल, चन्द्रोदय, शय्या, गज, अश्व आदि की अंबाड़ी, पादत्राण, सर्वपात्र, सर्वोषधि, मणि, दीप, भोजन, भाण्डागार, कोष्ठागार, पुस्तक, जपमाला, वाहन, शस्त्र, कवच, प्रक्खर, ढाल आदि, गृहोपकरण, क्रय, विक्रय, सर्व भोग्य-उपकरण, चमर, सर्ववांदित्र - इन सर्व वस्तुओं की स्थापना-विधि समाहित है।
अब यहाँ सर्वप्रथम बिम्ब-प्रतिष्ठा की विधि बताते हैं -
चैत्य में विषम अंगुल या हस्त परिमाण वाले बिम्ब को ही स्थापित करे, सम अंगुल परिमाण वाले बिम्ब को स्थापित न करे, बारह अंगुल से कम परिमाण वाले बिम्ब को चैत्य में स्थापित न करे। सुख की इच्छा रखने वाले व्यक्ति गृहचैत्य में ग्यारह अंगुल से अधिक परिमाण वाले बिम्ब को एवं लोह, अश्म, काष्ठ, मिट्टी, हाथीदाँत, गोबर से निर्मित प्रतिमा को भी न पूजे। कुशल की आकांक्षा रखने वाले खण्डित अंग वाली प्रतिमा, वक्र प्रतिमा एवं जिन्होंने कौमार्यकाल में ही घर-परिवार का त्याग किया है, अर्थात् जिन्होंने विवाह नहीं किया है, ऐसे मल्लीनाथ एवं अरिष्टनेमि भगवान् की प्रतिमा को भी कभी घर में प्रतिष्ठित करवाकर न पूजें। परिमाण से अधिक या कम
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