Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 8
________________ ( १० ) रूप न मान कर अत्यंत निंदनीयरूप तथा अकल्याणकरूप प्राप लोग किस सिद्धांत-पाठों से मानते हैं ? १० [प्रश्न] जिस समय में श्रीतीर्थकर महाराज अपनी माता की कुक्षि में आते हैं उस अवसर में माता १४ स्वप्नों को देखकर अपने पति से निवेदन करती है । राजा सुनकर स्वप्नलक्षण पाठकों को बुला के उन स्वप्नों का फल पूछता है । उसीको कल्याणकरूप माना जाता है। इसी प्रकार श्रीवीरप्रभु जिस समय त्रिशलारानी के गर्भ में आये उस समय माता ने १४ स्वप्नों को देखा और उसके अनंतर श्रीसिद्धार्थ राजा से निवेदन किया । राजा ने सुन कर प्रातःकाल में महोत्सव के साथ स्वप्न-लक्षणपाठकों से फल पूछा तो पंडितों ने स्वप्नों का फल बताया कि इस से कल्याणकारी तीर्थकर पुत्र उत्पन्न होंगे। ऐसा उत्तमोत्तम उन स्वप्नों का फल सुनकर राजादि आनंदित हुए । उसको आप लोगों ने एकांत पाँच ही कल्याणक के आग्रह से अति निंदनीयरूप अकल्याणकरूप किस प्रमाण से मान लिया है ? ११ [प्रश्न ] श्रीऋषभादि तीर्थकर महाराज अपनी अपनी माता की कुक्षि में आये, उसको शास्त्रकारों ने कल्याणक रूप माना है। उसी प्रकार श्रीवीर तीर्थकर त्रिशलामाता की कुक्षि में श्राये उसको श्रीभद्रबाहु स्वामी आदि अनेक प्राचार्यों ने कल्याएकरूप ही माना है, तथापि आपके धर्मसागरजी श्रादि उपाघ्यायों ने उसको अकल्याणकरूप सिद्ध करने के लिये जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के पाठ से श्रीऋषभदेव स्वामी के राज्याभिषेक को कल्याणक मानना बताया है। परंतु इससे भी अधिक कई तीर्थकर महाराजों के चक्रवर्तित्व श्रादि राज्याभिषेक हुए है उनको भी प्राप कल्याणक मानोगे या नहीं ? अगर यह कहोगे कि तीर्यकर के राज्याभिषेकों को कल्याणक नहीं मानेंगे, क्योंकि भीमद्रमाहु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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