Book Title: Prasad Mandan
Author(s): Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 11
________________ रखा होगा, मगर चामों प्रकार के बजट भवन के लिये शुभ।ऐसा अर्थ श्लोक से निकलता नहीं है, परन्तु शक्तिदेवी के मंदिरों में ही दोनों प्रकार के ध्वजड बनाना ऐसा निकलता है। अन्य मंदिरों के लिये तो विषमपर्व और समयपी बाला ही ध्वजदंड रखना शास्त्रीय है। पाचवें व्यसन में प्रामापुर: मारि: वैराज्य प्रादि पचीस प्रासादों का सविस्तर वर्णन उनको विभक्ति के मकशे के साथ लिखा गया है। छ8 अध्ययन में केसरी जाति के पास प्रासादों के नाम और उनकी सास विभक्ति के मतमतान्तर लिखा है । और नव महामे प्रासादों का वर्णन है। केसरी प्रादि पवीस प्रासादों का सविस्तर वर्णन ग्रंपकार ने लिखा नहीं है, जिसे इस ग्रंथ के अंत में परिशिष्ट नं. १ में अपराजित पृच्छासूत्र. १५६ का केसरी प्रादि प्रासादों का सविस्तर वसन अनेक नकशे प्रादि देकर सिखा हमा है। सात अध्ययन में प्रासाद के मंडों का सविस्तर वर्णन रेखा चित्र देकर लिखा गया है। उसमें पेज नं ११६ श्लोक में 'शुकनासलमा घण्टा न्यूना श्रेष्ठान चाधिका का पर्थ दीपाव के सम्पादक पेज नं०१३३ में नीच टिप्पनी में 'शुकनासथी घंटा ऊंची न करवी, पर नीची होय तो दोष नयी। ऐसा लिखा है और उसकी पुरता के लिये अपराजित पृच्छासूत्र १५५ श्लोक १३ वा का उत्तरा भी लिखा है। यह वास्तविक नहीं है, क्योकि जो उत्तराद्ध लिखा है वह घंटा नीली रखने के संबंध का नहीं है, परन्तु शुकनास के रखने के स्थान का विषय है। चम्जा से लेकर शिखर के स्कंध तक की ऊंचाई का इक्कीस भाग करना, उनमें से तेरह भाग की ऊंचाई में शुकनास रखना । तेरहवें भाग से अधिक ऊंचा नहीं रखना, किन्तु तेरहवां भाग से नीचा रखना दोष नहीं है। ऐसा अर्थ है उसको मामलसार घंटा का संबंध मिलाना अप्रामाणिक माना जाता है । वितान (चंदवा) छत के नीचे के तल भाग को वितान-बांदनी प्रथया चंदवा कहते हैं । उसके मुख्य तीन भेद हैं१. छत में जो लटकती प्राकृति होये, यह क्षिप्तवितान' कहा जाता है। २. छप्त की प्राकृति ॐषी गोल गुम्बज के जैसी हो वह 'उक्षिप्त वितान' कहा जाता है । ३. यदि छत समतल हो वा उसको 'समतल वित्तान' कहते है 1 यह बिलकुल सादो भयवा अनेक प्रकार के चित्रों से वितरी हुई प्रयया खुदाई बाली होती है। बीपाव के पृष्ट १३८ में श्लोक २२ के अनुवाद में क्षितोलित, समतल और डदित, ये लोन प्रकार के दितान लिखे हैं। यहां उदित शब्द पदधातुका भूत कुदल है, इसलिये इसका भयं 'कहा है। ऐसा कियावाचक होना चाहिये। संवरणा--- संबर को शिल्पीवर्ग सांभरण कहते हैं यह मंडप की छत के ऊपर अनेक कलशों की प्राकृति वाला होता है । इसकी रचना शास्त्रीय पद्धति का विस्मरण होजाने से अपनी बुद्धि अनुसार शिल्पीमो बनाते हैं।

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