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प्रमुख ९ प्रकार की प्राकृतों की सामान्य प्रवृत्तियां प्रस्तुत ग्रन्थ में दर्शायी गयी हैं। प्रन्य योजना एवं मामार
'संस्कृत-प्रवेशिका' लिखने के बाद विद्वानों एवं छात्रों से प्राकृत भाषा के ज्ञान के लिए व्याकरण एवं अनुवाद की एक पुस्तक लिखने की निरन्तर प्रेरणा मिलती रहती थी। फलस्वरूप प्रस्तुत 'प्राकृत-दीपिका' आपके समक्ष प्रस्तुत है।
ग्रन्थ योजना निम्न प्रकार है
(१) 'व्याकरण, अनुवाद और संकलन' इन तीन भागों में ग्रन्थ को स्पष्टतः विभक्त करके विषय को सुबोध बनाने का यह प्रथमतः प्रयत्न किया गया है ।
(२) व्याकरण भाग में यथावसर समानान्तर संस्कृत रूप देकर तथा संकलन भाग में संस्कृत छाया देकर संस्कृत-प्रेमियों की सुविधा का ध्यान रखा गया है।
(३) विशेष जिज्ञासुओं के लिए यथावसर प्रमाणस्वरूप प्राकृत वैयाकरणों (विशेषकर हेमचन्द्र) के सूत्रों को फुटनोट में उद्धृत किया गया है। कहीं-कहीं भाषा विज्ञान की दृष्टि से भी व्याकरण के नियमों को स्पष्ट किया गया है।
(४) हिन्दी भाषाविदों के सुबोधार्थ यथावसर प्राकृत-प्रयोगों का हिन्दी में अर्थ दिया गया है । सम्पूर्ण संकलन भाग का भी हिन्दी अर्थ दिया गया है ।
(५) व्याकरण के विशेष नियमों को कोष्ठक [ ] में दिखलाया गया है। अपरिहार्य कारणों से टाइप-भेद नहीं किया जा सका है।
(६) एकादश अध्याय में प्रमुख शब्दरूपों को देकर उनके समानार्थक अनेक शब्दों को गिनाया है, जिससे अधिकांश शब्दों के रूपों का ज्ञान हो सके।
(७) द्वादश अध्याय में प्रमुख धातुरूपों को देकर तथा प्रत्यय जोड़कर बवान्तर धातुओं के रूप चलाने का सरल तरीका बतलाया गया है।
(८) कारक, समास, तथा प्रत्ययान्त धातुओं (सन्नन्त, आदि) का भी स्पष्ट विवेचन किया गया है, जिसे कि प्रायः संस्कृतवत् बतलाकर छोड़ दिया जाता रहा है। इससे संस्कृत न जानने वाले तथा संस्कृतज्ञ दोनों लाभान्वित होंगे।'
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