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'पउमचरिउ' और 'रामचरितमानस' देखकर उसका आक्रोश प्रेममें बदल जाता है । वह उनसे अनुचित प्रस्ताव करती है । लक्ष्मण उसे अपमानित कर भगा देते हैं । राम-रावणके संघर्षको भूमिका यहीसे प्रारम्भ होती है। खरदूषणके हारनेपर चन्दनना रावणके पास जाकर अपनो गुहार सुनाती है। वह अवलोकिनी विद्याकी सहायतासे सीताका अपहरण कर लेता है। मार्गमें जटायु और भामण्डलका अनूचर विद्याधर इसका विरोध करता है । परन्तु उसकी नहों चलती। लंका पहुँचकर सीता नगर में प्रवेश करनेसे मना कर देती है. रावण लसे नन्दनवन में ठहरा देता है। रावण सोताको फुसलाता है। परन्तु व्यर्थ । रावणकी कामजन्य दयनीय स्थिति देखकर मन्त्रिपरिषद्को बैठक होती है।
तीसरे सुन्दर काण्डमें राम सुग्रोवकी पत्नीका उद्धार कपट सुग्रीव { सहस्रगति ) से इस शर्तपर करते हैं कि वह उनकी सीताकी खोजखबरमें योग देगा। पहले तो सुग्रीव चुप रहता है, परन्तु बादमें लक्ष्मणके हरसे वह चार सामन्त सीताको खोजके लिए भेजता है। सीवाफा पता लगनेपर हनुमान् सन्देश लेकर जाता है । सीताको प्रतिज्ञा थी कि वह पतिकी खबर मिलनेपर ही आहार ग्रहण करेंगी। हनुमानसे समाचार पाकर वह आहार ग्रहण करती है। समसोतेके सब प्रस्तावन्वार्ताएं असफल होनेपर युद्ध छिड़ता है, और रावण लक्ष्मणके हाथों मारा जाता है। रावणका दाहसंस्कार करनेके राद राम अयोध्या वापस आते हैं और सामन्तोंमें भूमिका वितरण कर देते हैं। कुछ समप राज्य करने के बाद, (कविक अनुमार ) रामका मन सोतासे विरक्त हो उठता है, अनुरक्तिके समय रामने सीताके लिए क्या-क्या नहीं किया, विरक्ति होने पर रामको वही सीता काटने दौड़ती है। वह उसका परित्याग कर देते हैं, सीताको वनमें से उसका मामा वनजंघ ले जाता है, जहां वह 'लवण' और 'कुश' दो पुत्रोंको जन्म देती है। बड़े होनेपर उनका रामसे द्वन्द होता है । बादमें रहस्य खुलनेपर राम उन्हें गले लगा लेते हैं । अग्नि परीक्षाके बाद सीता दीक्षा ग्रहण कर लेती हैं। कुछ दिन बाद लक्ष्मणको मृत्यु होती है, राम