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पउमचरित
उसपर आक्रमण करता है परन्तु हार जाता है। बाली दीक्षा ग्रहण कर लेता है।
नारद मुनिसे यह जानकर कि दशरथ और जनकको सन्तानोंके हाथ रावणको मृत्यु होगी, विभीषण दोनों को मारने का षड्यन्त्र रचता है । वे दोनों भाग निकलते हैं । दशरथ कौतुकमंगल नगरके स्वयंवर में भाग लेते हैं । ककेयी उन्हें वरमाला पहना देती है। इसपर दूसरे राजा दशरथपर आक्रमण करते हैं, कैकेयी युद्ध में उनकी रक्षा करती है, दशरथ उन्हें वरदान देते हैं । दारयक ४ पुत्र होते हैं, कोदाल्यासे रामचम्ट, ककेयीस भरत, सुमियासे लक्ष्मण और सुप्रभासे शत्रुध्न । जनवाके एक कन्या सीता और एक पुत्र भामण्डल उत्पन्न होता है । परन्तु इसे पूर्वजन्मके बैरसे एक विद्याधर राजा उड़ाकर ले जाता है। जनकके राज्यपर कुछ बर्षर म्लेच्छ राजा आक्रमण करते हैं। सहायता मांगनेपर दशरथ राम और लक्ष्मणको भेजने है । वे जनकको रक्षा करते हैं। स्वयंवरमें वच्चावर्त और समुद्रावर्त धनुष चहा देनेपर सीता रामको वरमाला पहना देती है । दशरथ अयोध्यासे बारात लेकर आते हैं। शशिवर्धन राजाकी १८ कन्याओंकी शादी रामके दुसरे भाइयों हो जाती है। बुढ़ापेके कारण दशरथ रामको राजगद्दी दना चाहते हैं । परन्तु बाँकेली अपने घर मांग लेती है जिनके अनुसार राम को वनवास और भरतको राजगद्दी मिलती है। उस समय भरत अयोध्या में ही था। राम वनवासके लिए कूच करते है। स्वयम्भूके अनुसार वास्तविक राघव-चरित यहींस प्रारम्भ होता है। गम्भीरा नदी पार करने के बाद राम जब एक लतागृहमें थे, तब भरत उन्हें अयोध्या वापस चलने के लिए कहता है। राम अपने हायसे दुबारा उसके सिरपर राजपट्ट बांध देते हैं । भरत जिनन्दिरमें जाकर प्रतिज्ञा करता है कि रामके लौटते ही वह राज्य उन्हें सौंप देगा। चित्रकूट से चलकर राम वंशस्थल नामक स्थानपर पहुंचते हैं, जहां सूर्यद्वारा खड्ग सिद्ध करते हुए शम्बुकका धोखेसे सिर काट देते हैं। उसकी माँ चन्द्रनखा अपने पुत्रको मरा देखकर हत्यारेका पता लगाती है । राम-लक्षमणको