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'पउमचरिउ' और 'रामचरितमानस'
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दूसरा विद्याधर वंश | आदि तीर्थंकर ऋषभनाथ इसी परम्परामें राजा हुए । उनके पुत्र भरत चक्रवर्तीको लम्बी परम्परा सगर चक्रवर्ती सम्राट् हुआ। वह विद्याधर राजा सहस्राक्ष की कन्या तिलककेशी से विवाह कर लेता है । सहस्राक्ष अपने पिता के बैरका बदला लेने के लिए, विद्याधर राजा मेघवाहनको मार डालता है। उसका पुत्र तोयदवाहन अपनी जान बचाकर तीर्थकर अजितनाथ के समवशरण में शरण लेता है । वहाँ सगर के भाई भीम सुभम दवाहनकी राक्षसंविद्या तथा लंका और पाताल का प्रदान करता है । यहींसे राक्षसवंशकी परम्परा चलती है जिसमें आगे चलकर रावणका जन्म होता है । इसी प्रकार इक्ष्वाकु कुलमें राम हुए ।
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तोयदवाहनकी पांचवीं पीढ़ी में कीर्तिषवल हुआ । उसने अपने साने श्रीकण्ठको वानरद्वीप भेंट दिया जिससे वानरवंशका विकास हुआ । 'वानर' श्रीकण्ठके कुलचिह्न थे । राक्षसवंश और वानरवंशमें कई पीढ़ियों तक मैत्री रहने के बाद श्रीमाला के स्वयंवरको लेकर दोनोंमें विरोध उत्पन्न हो जाता है। राक्षस वंशको इसमें मुंहको खानी पड़ती है । जिस समय रावणका जन्म हुआ उस समय राक्षस कुलकी दशा बहुत ही दमनीय थी ।
रावण के पिताका नाम रस्नाश्रव था और मौका कैकशी । एक दिन खेल-खेलमें भण्डारमें जाकर वह राक्षसवंशके आदिपुरुष तोयदवाहनका नवग्रह हार उठा लेता है, उसमें विजड़ित नवग्रहोंमें रावणके दस चेहरे दिखाई दिये, इससे उसका नाम दशानन पड़ गया। रावण दिन दूना रात चौगुना बढ़ने लगा। उसने विद्याधरोंसे बदला लिया । पूर्वजोंकी खोयी जमीन छीनी । विद्याधर राजा इन्द्रको परास्त कर अपने मौसेरे भाई श्रावणपुष्पक विमान छीन लिया। उसकी बहन चन्द्रनखाका खरदूषण अपहरण कर लेता है। वह बदला लेना चाहता है, परन्तु मन्दोदरी उसे मना कर देती है। बालीकी शक्तिको प्रशंसा सुनकर रावण उसे अपने अधीन करना चाहता है । परन्तु बाली इसके लिए तैयार नहीं है । रावण