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'पउमचरिउ' और 'रामचरितमानस'
स्वयम्भू और उनकी रामकथा
स्वयम्भूने आचार्य रविषेण ( ६. ६७४ ) का उल्लेख किया है, और पुष्पदन्तने ( ई. ९५९ ) स्वयम्भू का । अतः स्वयम्भूका समय इन दोनोंके बीच आठवीं और नौवीं सदियोंके मध्य सिद्ध होता है । कर्णाटक और महाराष्ट्र में उस समय घनिष्ठ सम्पर्क था, अतः अधिकतर सम्भावना यहाँ है कि स्वयम्भू महाराष्ट्रसे आकर यहाँ बसे । कुछ विद्वान् स्वयम्भूको कौनसे प्रव्रजित इस आधारपर मानते हैं कि प्रसिद्ध राष्ट्रकूट राजा भुवने कौजपर आक्रमण किया था और उसीके अमात्य रवडा धनंजय के साथ स्वयम्भू उत्तर से दक्षिण आये। परन्तु यह बहुत दूरकी कल्पना है जिसका कोई ऐतिहासिक आधार नहीं । स्वयम्भूकी भाताका नाम पानी और पिताका मारुतदेव था । कविको दो पत्नियाँ थीं-आदित्याम्मा और अमृतम्मा । एक अपुष्ट आधारपर उनकी तीसरी पत्नी भी बतायो जाती हूँ। एक धारणा यह भी है कि स्वयम्भूने अपनी तीनों रचनाएं अधूरी छोड़ों जिन्हें उनके पुत्र त्रिभुवन स्वयम्भूनं पूरा किया। परन्तु यह धारणा ठीक प्रतीत नहीं होती। क्योंकि यह विश्वास करना कठिन है कि स्वयम्भू जैसा महाकवि सभी रचनाओं को अधूरा छोड़ेगा । एकाध रचना के विषय में तो यह सच हो सकता है, परन्तु सभी रचनाओंके सम्बन्धमें नहीं । पउमचरिउके अलावा उनकी दो रचनाएँ और हूँ-रणेमि चरिउ' और 'स्वयम्भूच्छन्द' |
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स्वयम्भूके अनुसार रामकथा तीर्थंकर महावीरके समवशरणसे प्रारम्भ होती है। राजा श्रेणिक पूछता है और गौतम गणधर उसे बजति हूँ । उनके अनुसार, भारतमें दो वंश थे एक इश्वाकुवंश ( मानव वंश ) और
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