________________
पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म उद्यानमें क्रीडा कर रही थी, उसने पार्श्वनाथकी स्तुतिसे भरा हुआ गीत किन्नरियोंके मुँहसे सुना; तबसे वह पार्श्वनाथपर अनुरक्त हो गई है। उसके माँ-बापको जब यह बात मालूम हुई तो उन्हें बहुत हर्ष हुआ; आर उन्होंने उसे यहाँ पार्श्वनाथके पास भेजनेका निश्चय किया। ___ " यह समाचार यवन (नामक) कलिंग राजाने सुना तो वह अपने दरबारमें बोला, 'जब मैं यहाँ माजूद हूँ, तो प्रभावतीके साथ ब्याह करनेवाला यह पार्श्व कौन होता है ? और यह कुशस्थलीका राजा उसे मुझे क्यों नहीं देता ? परंतु दानकी प्रतीक्षा तो याचक करते हैं आर शूर लोग ज़बर्दस्तीसे छीन लेते हैं क्यों कि सारी चीजें शूरोंकी ही हैं।' ऐसा कहकर उसने बड़ी सेनाके साथ आकर कुशस्थलीको घेर लिया है। कोई भी व्यक्ति अन्दर या बाहर नहीं जा सकता । मैं किसी तरह रातको भाग निकला हूँ।" • दूतकी यह बात सुनकर अश्वसेनको बड़ा क्रोध आया और वह बोला, " यह तुच्छ यवन मेरे सामने क्या कर सकता है ? और मेरे रहते आपको डर काहेका है ? आपके नगरकी रक्षाके लिए मैं अभी सेना भेजता हूँ !” इतना कहकर उसने रणभेरी बजानेका हुक्म दिया।
पार्श्व उस समय क्रीडागृहमें था। उसने वह भेरीशब्द और एकत्रित हुए सैनिकोंका जोरदार घोष सुना तो पिताके पास जाकर पूछा कि, 'यह सारी तैयारी किसलिए हो रही है ? ' पिताने उस दूतकी
ओर इशारा करके उससे प्राप्त समाचार पार्श्वको सुनाया । तब पार्श्व बोला, " तात, इस मुहीममें आप स्वयं न जाकर मुझे भेजिए।" अश्वसेन बोला, “बेटा, तुम्हारी यह उम्र क्रीडा करनेकी है। अतः मुझे इसीमें आनन्द है कि तुम घरपर ही सुखसे रहो।" इसपर पार्श्वने कहा, “पिताजी, यह भी मेरी एक क्रीडा ही होगी। अतः आप घर पर ही रहें।" .. . .