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दो शक्तियोंकी टक्कर
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है कि उनपर सोवियतका इलाज लागू होना असंभव हो गया है। इतना ही नहीं बल्कि शस्त्रों और कूटनीतिसे इस इलाजका प्रतिकार करनेकी चेष्टा ये राष्ट्र लगातार किये जा रहे हैं। सोवियतकी सत्ता प्रस्थापित होते ही उसी तत्त्वपर इंग्लैंडने अपने साम्राज्यका संगठन किया होता तो दूसरा महायुद्ध होता ही नहीं। पर वैसा करनेके लिए यह आवश्यक था कि इंग्लैंडका मध्यवित्त वर्ग अपने स्वार्थको त्याग दे। अगर वह वैसा कर सकता तो,
अवश्यं यातारश्चिरतरमुषित्वापि विषया वियोगे को भेदस्यत्जति न जनो यः स्वयममून् । व्रजन्तः स्वातंत्र्यादतुलपरितापाय मनसः
स्वयं त्यक्ता ह्येते शमसुखमनन्तं विदधते ॥ (अर्थात् , चिरकालतक उपभोग करनेपर भी विषयभोग ( अंतमें ) निश्चय ही छोड़ जाते हैं। जो उनका त्याग नहीं करता और जो स्वयं त्याग करता है, उनमें क्या भेद है ? जब ये भोग आप ही आप चले जाते हैं तब भयंकर परितापका कारण बनते हैं, जब कि स्वयं उनका त्याग करनेपर वे अनन्त शान्तिसुख देते हैं। )—इस भर्तृहरिके कथनके अनुसार संसारमें अनन्त शान्तिसुखकी स्थापना की जा सकती।
दो शक्तियोंकी टक्कर अब एक तरफ 'आपणासारिखे करिती तात्काळ' (अपने जैसा तुरन्त बनाते हैं ) के सन्त-वचनका अनुसरण करनेवाले बोल्शेविकोंकी शक्ति और दूसरी तरफ संसारमें विषमताको बनाये रखनेकी चेष्टा करनेवाली ऐंग्लोअमेरिकनोंकी शक्ति-इस तरह दो शक्तियोंकी टक्कर होनेकी संभावना है। यदि सचमुच यह टक्कर हो जाय तो अनन्त शान्तिसुखके बजाय अनन्त मानव-दुःख फैल जायगा। अमेरिका, इग्लैंड और रूसकी जो