Book Title: Parshwanath ka Chaturyam Dharm
Author(s): Dharmanand Kosambi, Shripad Joshi
Publisher: Dharmanand Smarak Trust

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Page 130
________________ १०६ पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म जो न्याय यहाँ व्यक्तिपर चरितार्थ होता है वही समाज और राष्ट्रपर चरितार्थ होता है । धार्मिक कसौटी चातुर्याम धर्मकी कसौटी ही सच्ची धर्मकी कसौटी है । यदि आप धर्मके लिए युद्ध या अदालतोंमें नालिशें करने लगें तो कहना पड़ेगा कि चातुर्याम धर्म आपके गले नहीं उतरा है । धर्मके लिए झूठ बोलकर या व्यापारी लूट करके आप पैसा कमाने लगेंगे तो कहना पड़ेगा कि आप इन चातुर्यामोंसे बहुत दूर चले गये हैं । मन्दिर या मस्जिदें बनाने के लिए और उन्हें बनाये रखनेके लिए आप संपत्तिका संग्रह करने लगें तो कहना पड़ेगा कि आप अपरिग्रहका तत्त्व ही नहीं समझे हैं । यहाँ कोई धनवान् हमसे पूछेगा कि, "अजी, आप तो गरीब कुलमें पैदा हुए हैं; अतः यह ठीक है कि आपको चातुर्याम धर्म पसन्द आया । पर हमारे हाथमें कुछ भी परिश्रम किये बिना यह सारी सम्पत्ति आई है; उसे छोड़कर हम अपरिग्रही बनें तो क्या वह मूर्खता नहीं होगी ? मान लीजिए कि हम अपनी संपत्ति आज ही ग़रीबों में बाँट दें, तो क्या उससे सारा समाज अपरिग्रही बन जायगा ? फर्क केवल यही होगा कि हमारे स्थानपर दूसरे परिग्रही लोग आ जाएँगे । " इसपर हमारा उत्तर यह है कि, यह तर्क तो चोर भी पेश कर सकते हैं । कोई चोर पूछेगा कि, 'आप मुझे चोरीसे निवृत्त होने को कहते हैं, पर क्या उससे समाजमेंसे चोरीका नाश हो जायगा ? मेरे स्थानपर दूसरा कोई चोर आ जायगा ।' अब सवाल यही रहता है कि आपकी सम्पत्तिका बँटवारा कैसे किया जाय। उसे गरीबोंमें बाँट देनेकी अपेक्षा उसका उपयोग समाज-कार्यमें करना अच्छा होगा । इस कार्यकी कसौटी यही है कि उससे समाज अहिंसक, सत्यवादी, अस्तेयी और अपरिग्रही बनना

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