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धार्मिक कसौटी
चाहिए। इस कसौटीपर आजकलका दान-धर्म शायद ही खरा उतरता है। यह समझना ग़लत है कि ट्रस्टके द्वारा लाखों रुपये किसी सार्वजनिक कार्यके लिए रख देनेसे समाजकी उन्नति होगी।
तो फिर ऐसी संपत्तिका विनियोग कैसे किया जाय ? उसका उपयोग इस तरह किया जाय कि जिससे समाज तुरन्त चातुर्याम धर्मके अनुसार आचरण करने लगे। आजकल जो ट्रस्ट किये जाते हैं उनसे समाज कभी अपरिग्रही नहीं बन सकता। इस टूस्टकी निधिको जो ब्याज मिलता है वह समाजपर एक स्थायी बोझ बन जाता है। और कई जगह टूस्टी लोग अपने स्वार्थके लिए ही उस निधिका इस्तेमाल कर लेते हैं। राजकोटके ख्यातनामा बैरिस्टर श्री सीताराम नारायण पंडित कहते थे कि, " ट्रस्टपर मेरा विश्वास नहीं है। टूस्टके कई मामले मैंने अदालतमें चलाए और उनमें मैंने देखा कि ट्रस्टके पैसेका दुरुपयोग किया जाता है। अतः मैं अपने दान-धर्ममें यह सावधानी रखता हूँ कि सारा पैसा मेरी जिन्दगीमें ही अच्छे काममें लग जाय ।” अन्य लोग इससे सबक सीख सकते हैं। यदि आप समाजको हिंसा, असत्य, चोरी और परिग्रहसे छुड़ाना चाहते हैं तो आप अपनी सम्पत्ति — अहिंसामार्गी सोशलिज्म ' के प्रचारके लिए दे दें और ऐसा प्रबंध करें कि उसका विनियोग तुरन्त किया जायगा।
सोशलिस्ट लोग हिंसात्मक क्रान्तिको महत्त्व देते हैं; ऐसी हालतमें क्या उनकी मदद करना चातुर्यामके लिए असंगत नहीं है ? यह बात सही है कि बहुत-से सोशलिस्ट अंधानुकरण करनेवाले हैं और उन्हें ऐसा लगता है कि जो बात रूसमें हुई वही यहाँ होनी चाहिए, पर वे पिछले पचीस वर्षों में महात्मा गाँधी द्वारा किये गए आन्दोलनका ठीक निरीक्षण कर देखें । यदि हमने हिंसा और असत्यका मार्ग अपनाया