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मारणान्तिक सल्लेखनावत ~~~~~ ~ ~~~~ ~~rom
मारणान्तिक सल्लेखनाव्रत जैनोंके जो अनेक व्रत हैं उनका चातुर्यामकी अभिवृद्धिके लिए शायद ही उपयोग होता है। इन तपोंका आचरण किये बिना चातुर्याम धर्मकी अभ्युन्नति की जा सकती है। इन तपोंमेंसे एक ही तप या व्रत ऐसा है कि जिसका यथोचित पालन करनेसे वह व्यक्ति एवं समाजका हित करेगा । वह है सल्लेखना व्रत । वह केवल असाध्य रोगियों और जरा-जर्जरितोंके लिए है । अमीरोंको पक्षाघात या कैन्सर जैसा कोई असाध्य रोग हो जाय तो वे बिछौनेमें छटपटाते रहते हैं और उनकी शुश्रूषा और दवाके लिए हज़ारों-लाखों रुपये खर्च किये जाते हैं। स्वयं उन्हें और उनके रिश्तेदारोंको ऐसा लगता है कि उनका शीघ्र देहान्त होकर वे उन यंत्रणाओंसे मुक्त हो जायें । परन्तु ऐसे अवसरोंपर उन रोगियोंको उपवास करके रोगसे मुक्त होनेकी इच्छा नहीं होती और उनके रिश्तेदारोंको भी वह मार्ग पसन्द आएगा ही, ऐसा नहीं कहा जा सकता। सल्लेखना व्रतका महत्त्व यदि सर्वसम्मत हो जाय तो ऐसे प्रसंग आसानीसे टाले जा सकेंगे। ___ इस व्रतकी जानकारी ऊपर आ ही चुकी है* । असाध्य व्याधि या बुढ़ापेके कारण शरीर दुर्बल होनेपर जैन साधु और गृहस्थ मास-दोमास तक उपवास करके प्राण त्याग देते थे। इसके अनेक उदाहरण ऊपर आ चुके हैं। स्वयं पार्श्वनाथने भी इसी विधिसे सम्मेद शिखरपर देहत्याग किया था। इसकी कथा भी ऊपर आ चुकी है।
इस व्रतको अपनानेके लिए पहलेसे तैयारी करनी चाहिए। युवावस्थामें ही मनुष्यको ऐसा विचार करना चाहिए कि मेरा यौवन
aum..www.wommmmmmm * देखिए, पृष्ठ ४९ । ४ देखिए, पृष्ठ १२ ।