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पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म
होता, तो क्या अल्प परिश्रमसे हमारी इतनी प्रगति हुई होती ? सोशलिज्म प्रसार के लिए हिंसाकी आवश्यकता नहीं है; उसके लिए तो किसानों और मज़दूरोंका संगठन चाहिए, और वह पूर्णतया सन्मार्ग से किया जा सकता है । जो कोई अपनी सम्पत्ति इस काम के लिए दे देगा, उसे इतनी सावधानी अवश्य लेनी चाहिए कि उसका उपयोग सन्मार्गसे और सत्कार्यमें किया जायगा ।
हम जैसे गरीब कुल में जन्म पाये हुए लोगोंके लिए चातुर्याम धर्मका अंगीकार करना सुलभ है । अंधश्रद्धा, विलास और मान-सम्मानकी अभिलाषा ही हमारे मार्गमें बाधा डालनेवाले दुर्गुण हैं । हमारे पूर्वज जिन देवताओंकी पूजा करते थे वे सब हिंसक हैं । फिर भी हम केवल 1 अंधश्रद्धाके कारण उनकी भक्ति कर रहे हैं । हम पैसे के पीछे क्यों पड़े ? इसीलिए कि हम और हमारे बाल-बच्चे मौज उड़ाएँ और लोगों में मानसम्मान प्राप्त करें ।
चातुर्याम ही हमारा देवता है
ऐसे किसी भी दुर्गुणके चंगुलमें न फँसकर हम गरीब और - अमीर—यह जान लें कि चातुर्याम धर्म ही हमारा देवता है, और इसके लिए काया, वाचा, मनसे प्रयत्नशील रहें कि लोगों में इस देवताके प्रति भक्ति बढ़े और उसके द्वारा लोग सुख-शांति के साथ रहने लगें । चातुर्याम धर्म ही सच्चा चतुर्मुख ब्रह्मा है और उसकी आराधना में ही हमारा तथा दूसरोंका मोक्ष है । इस चातुर्याम - धर्मरथके अहिंसा आदि चार पहिये हैं। उनमें कुछ न्यूनाधिक हो जाय या उनमें से कोई पहिया टूट जाय तो यह धर्मरथ नहीं चल सकेगा । अतः केवल श्रद्धापर आधार न रखकर इन चार पहियोंका बार बार निरीक्षण करके हमें ऐसा सतत प्रयत्न करना चाहिए कि वे अव्याहत चलते कर्मयोग है ।
रहें । यही सच्चा