Book Title: Parshwanath ka Chaturyam Dharm
Author(s): Dharmanand Kosambi, Shripad Joshi
Publisher: Dharmanand Smarak Trust

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Page 136
________________ 112 पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म सारा भार समाजको उठाना पड़ता है। ऐसे रोगी एवं जरा जर्जरित व्यक्ति स्वेच्छासे अनशनव्रतका स्वीकार करें तो इसमें शक नहीं कि समाजका बोझ कम होगा / और ऐसे लोग लुप्त हो जायँ तो समाज भी प्रफुल्लित होगा। उपसंहार चातुर्याम धर्मका उद्गम ऋषि-मुनियोंके अहिंसा-धर्ममेंसे हुआ और पार्श्वनाथने उसे प्रचलित किया। बुद्धने उसमें समाधि एवं प्रज्ञाको जोड़कर उसका विकास किया। ईसा मसीहने यहूदियोंके यहोवा (जेहोवा) के आधारपर इसी धर्मका प्रचार पश्चिममें किया। उसमें शरीरश्रमको जोड़कर सत्याग्रहके रूपमें राजनीतिक क्षेत्रमें भी वह कैसे प्रभावशाली किया जा सकता है, यह महात्मा टॉलस्टायने विशद करके दिखाया; और महात्मा गाँधीने उसके प्रत्यक्ष प्रयोग करके यह दिखला दिया कि वह सफल हो सकता है। अतः पार्श्वनाथ, बुद्ध, ईसा, टॉलस्टाय और गाँची इस चातुर्याम धर्मके मार्गदर्शक हैं / यह नहीं कहा जा सकता कि उनके परिश्रम पूर्णतया सफल हुए हैं / जैन, बौद्ध एवं ईसाई लोगोंमें भी हिंसाधर्मपर श्रद्धा रखनेवालोंकी संख्या बहुत बड़ी है; और उन्हें उन्हींका धर्म समझा देना असंभव हो गया है। फिर भी निराश होनेका कोई कारण नहीं है; क्योंकि हमारा यह दृढ़ विश्वास है कि इस चातुर्याम धर्मका सर्वतोपरि विकास करनेवाले बहुत-से शास्ता (नेता) भविष्यमें पैदा होंगे। हम ऐसी प्रार्थना करते हैं कि ऐसे नेता बार बार पैदा हों और उनके सत्कर्मोंसे सारा मानव-समाज उन्नत स्थिति तक पहुँच जाए। eseedom / समाप्त

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