Book Title: Parshwanath ka Chaturyam Dharm
Author(s): Dharmanand Kosambi, Shripad Joshi
Publisher: Dharmanand Smarak Trust

View full book text
Previous | Next

Page 123
________________ अन्य व्रत ९९ - - होनेपर वे संतति-निरोध करने लगते हैं। इस संतति-निरोधमें सबसे बड़ा खतरा यह है कि उससे स्त्री-पुरुषोंकी कामतृष्णा कम होनेके बजाय बढ़ती जाती है और उसके कारण मन और शरीरपर बुरे परिणाम होते हैं। इससे यह अच्छा है कि लोकोपयोगी कामोंमें दक्ष रहकर स्त्री-पुरुष ब्रह्मचर्यके पालन करनेका अभ्यास करें। इस ब्रह्मचर्यकी शिक्षा युवकयुवतियोंको अवश्य दी जानी चाहिए। यद्यपि इस व्रतका उपदेश पार्श्वनाथने नहीं दिया है, तथापि उनके अपरिग्रह याममें इसका समावेश हो जाता है। अन्य व्रत जैनोंके आगम ग्रन्थोंमें ही यह बताया गया है कि पार्श्वनाथने केवल चातुर्याम धर्मका उपदेश दिया है। फिर भी हेमचन्द्राचार्यने उनके उपदेशमें ब्रह्मचर्य ही नहीं, बल्कि और भी सात व्रतोंको जोड़ दिया है। वास्तवमें देखा जाय तो चार यामोंका यथार्थ अर्थ समझकर अभ्यास करनेवालेके लिए ये व्रत बेकार हैं । उदाहरणके लिए, दिविरति एवं देशविरतिको ही लीजिए । * जो व्यक्ति चातुर्याम धर्मका ठीक तरहसे पालन करेगा उसे ऐसा नियम करनेकी क्या आवश्यकता है कि मैं 'अमुक दिशामें या अमुक प्रदेशमें नहीं जाऊँगा' ? बल्कि यह नियम समाजके लिए घातक साबित होगा; क्योंकि यामोंका पालन करनेवाला व्यक्ति जिस-जिस दिशा और जिसजिस प्रदेशमें जाएगा, उस-उस दिशा और प्रदेशमें अपने उदाहरणसे चातुर्यामका महत्त्व औरोंको समझा देगा। सब दिशाओं और सब प्रदेशोंमें जाकर चातुर्याम धर्मका प्रचार करना उसका कर्तव्य होते हुए भी वह ऐसे नियमोंमें फँस जाय, तो क्या वह अनुचित नहीं होगा ? * देखिए, पृष्ट १० ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136