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इतिहासकी शिक्षा
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हाथ-पाँव फैला दिये। पर अन्तमें क्या बचा ? यही आजकलका फैन्कोका स्पेन !
अंग्रेज़ लोग स्पेनके लोगोंसे आगे बढ़ गये । उधर अमेरिकामें उन्होंने शक्तिशाली उपनिवेश कायम किया और लगभग आधा अफरीका
और एशियाका काफी हिस्सा अपनी छत्रछायामें ले लिया। पर इन सारे पराक्रमोंसे इग्लैंडका क्या हित हुआ ? बस यही कि, धनिकवर्ग अधिक मालदार बना और मज़दूरोंको थोड़ा अधिक वेतन मिल गया। परन्तु इतने-से लाभके लिए उन्होंने खानोंके रूपमें अपने देशको खोद डाला आर दुनियाके सुंदर अरण्योंको नष्ट कर दिया। अब क्या बचा है ? केवल ऋणग्रस्तता! जिन उत्तर अमरीकियोंका वे मज़ाक उड़ाते थे उन्हींका सहारा लेकर उन्होंने किसी तरह अपने साम्राज्यको सँभाल रखा है । पर यदि आप पूछेगे कि इससे क्या लाभ हुआ, तो कोई इसका ठीक-ठीक उत्तर नहीं दे सकेगा।
नेपोलियनके नेतृत्वमें फ्रान्सीसियोंने अनेक पराक्रम किये; उनका सिक्का समूचे यूरोपपर जम गया। पर नतीजा क्या हुआ ? फ्रान्सीसियोंका ही अनुकरण करके जर्मनीने फ्रान्सको परास्त किया और आज फ्रान्स देशकी स्थिति बहुत दयनीय हो गई है।
हमारे बचपनमें मराठोंके इतिहासकी बड़ी चर्चा थी । एक राजनीतिक शूर कविकी कविताकी दो पंक्तियाँ इस प्रकार हैं:—'तुम्ही ते मराठे, तुम्ही ते मराठे । तुम्ही चारिले सर्व शत्रूस काँटे ।' (अर्थात् तुम वही मराठे हो जिन्होंने अपने सारे दुश्मनोंको काँटे खिला दिये । अर्थात् बुरी तरह हरा दिया।) 'मराठे' के साथ 'काँटे' का तुक तो जम गया और इससे मराठोंको प्रोत्साहन भी मिलता होगा । पर उससे फायदा क्या हुआ ? शत्रुओंको काँटे खिलानेवाले मराठे आज क्या कर रहे हैं ?