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- राष्ट्रीयताका विकास
८१ या गाड़ देते। यह संस्था १८ वीं सदी तक चल रही थी। पुराने गोवा शहरमें इस संस्थाकी जगह आजतक दिखाई जाती है और उस संस्थाकी याद आते ही आज भी लोगोंके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। . __जिस धर्मगुरुने यह अत्यंत अहिंसक उपदेश दिया कि ' तुम्हारे दाहिने गालपर कोई तमाचा जड़ दे तो तुम अपना बायाँ गाल भी उसके आगे कर दो।'-उसीके नामपर उसीके अनुयायियोंद्वारा की गईं इन करतूतोंको पढ़ने या सुननेपर हमारे मनमें मनुष्य-स्वभावके विषयमें एक प्रकारकी घृणा या निराशा पैदा हो जाती है।
- राष्ट्रीयताका विकास ऐसी करतूतोंसे पोप और पादरियोंके प्रति जनसाधारणकी आदबुद्धि कम होना स्वाभाविक था। उसके साथ ही मध्यम वर्गके लोगोंमें ग्रीक और लैटिन भाषाओंका ज्ञान बढ़ता गया। इससे लोग धर्मकी अपेक्षा राष्ट्रीयताकी ओर विशेष खिंचते गये और हर तरफ़ स्वदेशाभिमानका प्रसार होता गया। इसमें बाइबिलसे भी मदद मिल गई । तौरात या प्राचीन बाइबिलका यहोवा पूर्णतया सांप्रदायिक देवता था, उसके स्थानपर राष्ट्रीयताके आनेमें देर नहीं लगी। ग्रीक लोगोंके कानून उनके शहरोंतक ही सीमित होते थे। फिर भी उनके इतिहास और दर्शन-शास्त्रने यूरोपीय राष्ट्रीयताम काफी मदद पहुँचाई । यह तो सभी जानते हैं कि आजकल यूरोपमें चलनेवाले कानून रोमन लोगोंके कानूनोंपरसे ही लिये गए हैं।
पर केवल राष्ट्रीयतासे आजीविका और ऐश-इशरतका सवाल हल नहीं हो सकता। अतः उपनिवेशोंके लिए संघर्ष शुरू हुआ। पहले स्पेन देश आगे चला और फिर इग्लैंड आगे बढ़ा । इस राष्ट्रीयताका जन्म ही हिंसामेंसे हुआ और हिंसाके बलपर ही वह बढ़ती गई । उसका सारा