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इस्लामका प्रसार
इस्लामका प्रसार इधर ईसाई संघकी उन्नति एवं आध्यात्मिक अवनति चल रही थी और उधर ईसाकी छठी शताब्दीके उत्तरार्धमें (सन् ९७० ईसवीके लगभग ) अरब देशमें मुहम्मद पैगम्बरका जन्म हुआ । अरब लोग सैकड़ों देवताओंकी पूजा करते थे। बड़े होनेपर हज़रत मुहम्मद इस सम्बन्धमें सोचने लगे । यद्यपि वे पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे; तथापि आसपासके यहूदी पंडितोंसे उन्होंने बाइबिलका अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया और अपनी आयुके ४० वें वर्षसे वे ऐकेश्वरी धर्मका उपदेश देने लगे। प्रारंभमें उनकी पत्नी ख़दीजा और कुछ इने-गिने लोग उनके भक्त बने । पर धीरे-धीरे मक्कामें उनके मतका प्रसार होने लगा। तब वहाँके अधिकारियों ने उन्हें मार डालनेका षड्यंत्र रचा । मुहम्मद साहबको इसका पता लग गया और वे ५१ बरसकी उम्रमें ता० २० सितम्बर सन् ६२२ ईसवीको रात ही रात मदीना चले गये । उनके इस निर्गमनको हिजरत कहते हैं और उस दिनसे हिजरी संवत् माना जाता है।
मदीनामें मुहम्मद साहबको बहुत अनुयायी मिले और उनकी मददसे उन्होंने मक्काको जीत लिया । यह स्पष्ट है कि पार्श्वनाथ, बुद्ध या ईसाके अहिंसा-धर्ममें मुहम्मद साहबको बिलकुल श्रद्धा नहीं थी। वे यहूदी लोगोंके मूल देवता यहोवाकी ओर झुके । यहोवा और मुहम्मद के अल्लातालामें केवल इतना ही फर्क है कि यहोवा केवल यहूदियोंकी चिन्ता करता है, जब कि अल्ला उन सबकी फ़िकर रखता है जो इसलामको स्वीकार करते हैं। मुहम्मद साहब जात-पात नहीं मानते थे; और उनका शस्त्र-बल भी बढ़ता गया; इससे इस्लाम धर्म तुरन्त फैल गया। - मुहम्मद पैगम्बरकी मृत्यु ६२ बरसकी आयुमें हुई। उनके बाद अबू बकर गद्दीनशीन हुआ । सन् ६३४ में उसकी मृत्यु हो जानेपर