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पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म
चली जायगी। उससे जनसाधारणका बेहद नुकसान होगा। इस संकटको टालना हो तो आजसे ही इस राष्ट्रीयताके विरुद्ध आन्दोलन शुरू करना चाहिए। अपनी-अपनी भाषा एवं संस्कृतिका विकास सब लोग अवश्य करें; पर एक दूसरेके प्रति असहिष्णु न हों। राष्ट्रीयताका व्यसन बढ़ा तो यह संघर्ष सहज ही पदा किया जा सकेगा।
धार्मिक सांप्रदायिकतासे खतरा धार्मिक सांप्रदायिकताके कडुवे फल आज हमें चखने पड़ रहे हैं। मुसलमानोंके अज्ञान और उससे उत्पन्न संकीर्ण स्वार्थसे फायदा उठाकर अंग्रेज़ोंने उन्हें अन्य समाजसे विभक्त कर दिया और उनके दंगों-फ़िसादोंको प्रोत्साहन देकर अपनी सत्ताको बनाये रखनेका निंद्य प्रयत्न किया । इससे उन्होंने हिन्दुस्तानका और अपना भी दुःख बढ़ा लिया है । प्रथम महायुद्धके बाद सोवियत रूससे ठीक सबक सीखकर यदि अंग्रेज़ोंने सोवियतकी तरह ही अपने साम्राज्यमें सुधार कर लिये होते तो दूसरे महायुद्धकी नौबत ही न आती। मगर वैसा करनेके बजाय उन्होंने हर तरफ़ मेद-नीतिको ही अत्यंत प्रोत्साहन दिया । इस काममें उन्हें धार्मिक सांप्रदायिकतासे अच्छी मदद मिली। उधर उन्होंने प्रोटेस्टंट आयलैंडको कैथॉलिक आयलैंडसे पृथक् कर दिया; अपने साम्राज्यके मार्गपर पैलेस्टाइनमें यहूदियोंको प्रोत्साहन देकर वहाँ अल्पसंख्यकोंकी एक अजीब राज्यपद्धति खड़ी की। हमारे यहाँ ब्रह्मदेश ( बर्मा ) को अलग कर दिया और हिन्दू-मुसलमानोंके झगड़ोंको और भड़का दिया । परिणामस्वरूप दूसरा महायुद्ध छिड़ गया और अमेरिकाकी मिन्नतें करके अंग्रेजोंने अपना बेड़ा किसी तरह पार लगाया। परंतु अभी तक उन्हें अपनी नीतिके लिए पश्चात्ताप नही हुआ। आज भी उनकी चालें चल रही हैं आर ऐसे चिह्न स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं कि उसमें इंग्लैंडका समूल नाश हुए बिना ये चालें बंद नहीं होंगी।