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पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म
हों तो भी सामान्य जनताकी चिन्ता उसे है और लीग केवल अपने ही स्वार्थके पीछे पड़ी हुई है । इस संघर्षमें से साम्यवादी सत्ताका निर्माण होना संभव नहीं है । इससे विपरीत अंग्रेज़ोंकी सत्ता मज़बूत होती जा रही है । जब मुस्लिम श्रमिकोंके ध्यानमें यह बात आएगी तभी साम्यवादियों को उनसे मदद मिलेगी । उनमें जातिभेदका झंझट कम होनेसे वे साम्यवादकी तरफ़ जल्दी झुकेंगे । मगर लीगकी मदद करने से उनकी फिरकापरस्ती बढ़ जायगी और वे साम्यवादसे दूर चले जाएँगे । अतः कम्यूनिस्टों के हितमें यही अच्छा है कि वे ऐसे कुटिल मार्गपर न चलकर सीधे मार्गको ही अपनाएँ ।
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सोशलिस्टों का प्रचार
कम्यूनिस्टों और सोशलिस्टोंके सिद्धान्त एक होते हुए भी उनमें घोर दुश्मनी है। सोशलिस्टों यानी समाजवादियोंका कहना है कि साम्यवादियों के पास उनकी अपनी बुद्धि नहीं है, वे मॉस्कोके गुलाम हैं । और साम्यवादियोंको ऐसा लगता है कि अन्य देशोंके समाजवादियोंकी तरह ही भारतीय समाजवादी भी केवल नामके ही मार्क्सवादी हैं। दोनों क्रान्ति चाहते हैं, पर उनके मार्ग भिन्न हैं। दोनों कहते हैं कि जबतक लोग हिंसात्मक मार्गको नहीं अपनाएँगे तबतक क्रान्ति नहीं होगी ।
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मगर दोनों यह भूल जाते हैं कि रूसकी हालत और हमारे देशकी हालतमें बहुत अन्तर है । रूसमें किसानों और मज़दूरोंको अनिवार्य फ़ौजी शिक्षा मिलती थी । ऐसा होते हुए भी लड़ाई के मैदान में ज़ारकी हार होनेतक साम्यवादियों और समाजवादियोंकी कुछ न चली । तबतक उनका प्रचार अहिंसात्मक ही था । वे लोगोंको संगठित बननेका उपदेश देते और मौका आनेपर