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पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म
तथापि उसके हाथमें सारी सत्ता नहीं थी । वह मांडलिक था और उच्च अधिकार रोमन बादशाहके हाथमें थे । उस बादशाहका एक अधिकारी जरुशलेममें रहता था और प्रजाके विशेष हितों की देखभाल करता था । यहूदी लोगोंकी यह पक्की धारणा थी कि यहोवाकी पूजा विधिपूर्वक न करने के कारण ही उनपर ये संकट आते हैं । उनकी यह दृढ़ श्रद्धा थी और अब भी है कि यहोवा उनके पापोंके लिए उन्हें क्षमा करके किसी मुक्तिदाता मसीहा ( Messiah ) को भेज देगा । ईसाई लोग मानते हैं कि यहोवाका भेजा हुआ मुक्तिदाता ईसा मसीह ही है, जो कि यहूदियोंको स्वीकार नहीं है ।
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ईसाके उपदेशमें गिरिप्रवचन श्रेष्ठ माना जाता है । उसमें ईसा कहता है, “ तुमने पहलेके लोगोंका कथन सुना ही होगा कि ' तुम हत्या मत करो और जो हत्या करेगा वह न्यायदण्डके लिए पात्र होगा ।' पर मैं कहता हूँ कि जो विना कारण अपने भाइयोंपर क्रोध करेगा वह न्यायदण्डका पात्र होगा और जो अपने भाइयों को निकम्मा कहेगा वह महासभा में दण्डपात्र होगा । अतः यदि तुम भगवान् के लिए भेंट लाओ और वहाँ तुम्हें अपने भाइयोंके विरोधका स्मरण हो आ तो भेंट वहीं रखकर पहले अपने भाइयोंको समझा दो और तब वह भेंट भगवान्को समर्पित कर दो.....
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तुमने पहले लोगों से सुना है कि, 'तुम व्यभिचार मत करो । ' - पर मैं कहता हूँ कि जो कोई कामवासनासे स्त्रीकी ओर देखता है वह अपने हृदयमें ही उसके साथ व्यभिचार करता है ....
" तुमने सुना है कि, 'आँखके लिए आँख और दाँतके लिए दाँत, '* * देखिए, ऊपर पृष्ठ ७१ ।