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पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म
मक्खलिके नामपर ऐसे श्लेष करके और उसके सम्बध में अन्धाधुन्ध दन्तकथाएँ लिखकर जैन और बौद्ध ग्रन्थकारोंने अपना ओछापन ही प्रकट किया है। ऊपर दी गई मक्खलिकी कथा जैन आगमों में ही है । अब हम देखेंगे कि उसमें कहाँ तक तथ्य है ।
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मक्खलि आजीवक सम्प्रदायका नेता था । परंतु वह उस संप्रदायका संस्थापक नहीं था । उससे पहले नन्दवच्छ और किस संकिञ्च ये दोनों उस सम्प्रदायके नेता थे ।
एक बार भगवान् (बुद्ध) राजगृह में गृध्रकूट पर्वतपर रहते थे । उस समय आयुष्मान् आनन्द भगवान् के पास गया, भगवान्को नमस्कार करके एक तरफ बैठ गया और बोला, “ भदन्त, पूरण काश्यपने जो छह अभिजातियाँ बताई हैं वे इस प्रकार हैं : - चिड़ीमार, कसाई आदि शूर कर्म करनेवाले लोगोंकी कृष्णाभिजाति, बुरे कर्मोपर श्रद्धा रखनेवाले श्रमणोंकी नीलाभिजाति, एक वस्त्र रखनेवाले निर्ग्रथोंकी लोहिताभिजाति, आजीवक श्रावक गृहस्थोंकी हरिद्राभिजाति, आजीवक श्रमणों और श्रमणियोंकी शुक्लाभिजाति, और नन्दवच्छ ( वत्स ), किस संकिञ्च ( कृश संकृत्य ) और मक्खलि गोसालकी परमशुक्लाभिजाति । इस प्रकार ये छह अभिजातियाँ पूरण काश्यपने बताई हैं।"*
पूरण काश्यप दूसरे एक बड़े संप्रदायका नेता था । वह इन जातियोंका वर्णन करता है और उनमें नन्दवत्स, कृश संकृत्य, और मक्खलि गोसाल, इन तीनों का ही अत्युच्च जातिमें समावेश करता है; इससे ऐसा लगता है कि उस समय ये तीन ही जिन थे ।
* यह सुत्तका सारांश है । मूल सुत्त अंगुत्तरनिकाय छक्कनिपात, दुतियपण्णासक, पठमवग्गमें देखिए ।