Book Title: Parshwanath ka Chaturyam Dharm
Author(s): Dharmanand Kosambi, Shripad Joshi
Publisher: Dharmanand Smarak Trust

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ - पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म घास जमा करके उनसे एक बेड़ा तैयार करेगा और उसके सहारे उस नदी या तालाबके उस पार जायगा । वहाँ वह कहेगा कि, 'इस बेड़ेने मुझपर कितने उपकार किये हैं ! अतः इसे कंधे या सिरपर उठाकर ले जाना उचित है ।' क्या ऐसा हम कह सकते हैं कि ऐसा कहनेवाले उस आदमीने उस बेड़ेके प्रति अपना कर्तव्य पूरा किया ?" भिक्षु बोले, " नहीं भदन्त !" भगवान् बोले, " उस आदमीके लिए यही उचित होगा कि, 'यह बेड़ा मेरे बहुत काम आया'-ऐसा कहकर वह उसे नदीकिनारे या पानीमें छोड़कर चला जाय । मेरा बतलाया हुआ धर्म इसी बेड़ेकी तरह है। धर्म निस्तरणके लिए है न कि ग्रहणके लिए। यह जानकर आप लोग धर्मका भी परिग्रह न करें; फिर अधर्मकी तो बात ही क्या ?" परंतु ये सारे उपदेश पुस्तकोंमें ही रह गये । श्रमण अपने-अपने संप्रदायोंको सिरपर उठाकर घूमने लगे और उसके लिए उन्हें राजाओंकी मनुहारें करनी पड़ी। अपने विहारोंकी रक्षाके लिए बौद्ध भिक्षुओंद्वारा राजासे मदद लिए जानेका एक उदाहरण मैंने अपनी पुस्तक ' भारतीय संस्कृति और अहिंसा' (वि. २११०७-११२) में दिया है। अब यहाँ जैन साधुओंके कुछ उदाहरण देता हूँ। कालक कथा विक्रम संवत्से कुछ वर्ष पहले उज्जैनमें गर्दभिल्ल राज्य करता था। उस समय जैन साधु कालकाचार्य अपनी जैन साध्वी बहनके साथ वहाँ पहुँचा । गर्दभिल्ल राजाने उस साध्वीको ज़बरदस्तीसे अपने रनवासमें रख लिया। तब कालकाचार्य अकेला ही सिन्धुनदीके प्रदेशमें चला गया। वहाँ शाहि नामक शकमांडलिक राजाओंका राज्य था। उन्हें कालकाचार्यने अपने वशमें कर लिया और उन्हें काठियावाड़ (सौराष्ट्र ) मार्गसे उज्जैन लाकर गर्दभिल्लको हरा दिया। इस लड़ाईमें गर्दभिल्ल मारा गया। " चा

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136