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बप्पभट्टिसूरि-कथा ।
(यह कथा ऐतिहासिक है या नहीं, इस सम्बन्धमें विवाद है। देखिए, केम्ब्रिज हिस्ट्री आफ इंडिया, पृष्ठ १६७–१६८ और ५८२)
___ बप्पभट्टिसूरि-कया बप्पभट्टिका असल नाम सूरपाल था। उसके पिताका नाम बप्प और माताका भट्टि था। उसकी होशियारी देखकर सिद्धसेनसूरि नामके जैन आचार्यने उसे दीक्षा देनेका निश्चय किया। परन्तु माँ-बापका वह इकलौता बेटा था, इसलिए वे तैयार नहीं हुए। अन्तमें आचार्यके अत्याग्रहकी ख़ातिर, उन्होंने इस शर्तपर उसे आचार्यके हवाले कर दिया कि सूरपालका नाम उन दोनोंके नाम पर रख दिया जाय । आचार्यने उसे उसकी सात बरसकी अवस्थामें दीक्षा दी और उसका नाम भद्रकीर्ति रखा। परंतु उसके माँ-बापके साथ हुए करारके अनुसार सभी लोग उसे बप्पभट्टि कहने लगे।
बप्पभट्टि जब थोड़ा बड़ा हुआ तो आम नामके युवकसे उसकी भेंट हुई। आमकी माता कनौजके राजा यशोवर्माकी रानी थी, उसकी सौतकी कोशिशोंके कारण राजाने उसे निर्वासित कर दिया और वह गुजरातमें रामसण नामके गाँवमें जाकर रही। बादमें जब उसकी सौत मर गई तो यशोवर्माने आमकी माँको वापस बुला लिया। पर आम गुजरातमें ही रह गया। बप्पभट्टि आमको लेकर अपने आचार्यके पास गया और आचार्यने आमको आश्रय दिया। बप्पभट्टिके साथ वह भी अध्ययन करने लगा।
आगे चलकर यशोवर्माका देहान्त हुआ और आमको कन्नौजकी गद्दी मिली, उसने बप्पभट्टिको बुलवाकर उसे आचार्यपद दिया । गौड़ देशके राजा धर्मके साथ आमका बैर था। तब उन दोनोंने यह तय