Book Title: Parshwanath ka Chaturyam Dharm
Author(s): Dharmanand Kosambi, Shripad Joshi
Publisher: Dharmanand Smarak Trust

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Page 75
________________ चुलणीपिता उपासक तब उस देवताने अपना मूल रूप धारण किया और कहा, 66 इन्द्रका कहना था कि तुझे तेरे व्रतसे कोई डिगा नहीं सकेगा । उसकी बातका विश्वास न करके मैं यहाँ आ गया था । हे देवानुप्रिय, तू ऋद्धिमान् है । मैं तुझसे क्षमा माँगता हूँ ।" इतना कहकर वह कामदेवको प्रणाम करके चला गया । उपासकत्वके २० बरस पूरे होने पर कामदेव ३० दिन अनशन करके सल्लखेना व्रतसे स्वर्गलोक पहुँचा । चुलणीपिता उपासक तीसरा उपासक चुलणीपिता काशीका रहनेवाला था । उसके पास आठ करोड़ सुवर्णमुद्राएँ गाड़ी हुईं, आठ करोड़ व्यापार में लगाई हुई और आठ करोड़ प्रविस्तरमें लगाई हुई थीं तथा ८० हजार गाएँ थीं। बाकी सब आनन्द उपासककी तरह ही था । जब वह पोषधशाला में व्रताचरण कर रहा था तब एक देवताने उसके बड़े लड़केको उसके सामने लाकर मार डाला और उसका मांस एक कड़ाहे में पकाकर उसके शरीरपर डाल दिया । पर चुलणी पिता स्थिर रहा। उस देवताने चुलणीपिताके दूसरे एवं तीसरे लड़केको मी मारकर उनका मांस उसी तरह उसपर फेंका; और वह बोला, " हे चुलणीपिता, यदि तू व्रतका त्याग नहीं करेगा, तो मैं तेरे पुत्रोंकी तरह तेरी माँको भी तेरे सामने लाकर मार डालूँगा । " तब चुलणीपिताके मनमें यह विचार आया कि, "यह दुष्ट मेरी जननीको भी मेरे सामने मार डालना चाहता है, अतः इसे पकड़ना अच्छा होगा । वह उठ खड़ा हुआ; परंतु वह देवता आकाशमें उड़ गया. पिताके हाथमें खंभा आ गया। उसने जो घोर शब्द किया उसे सुनकर उसकी माँ भद्रा उसके पास गई और बोली, " हे पुत्र, क्या तू जोर से चिल्लाया ? " चुलणीपिताने उसे सारी घटना कह सुनाई; "" यह सोचकर और चुलणी

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