Book Title: Parshwanath ka Chaturyam Dharm
Author(s): Dharmanand Kosambi, Shripad Joshi
Publisher: Dharmanand Smarak Trust

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Page 77
________________ कुण्डकोलिक उपासक ५३ . womammmmmmmmmmmmmmmm गया। उसके चिल्लानेसे उसकी पत्नी बहुला वहाँ गई और उसने उसे सजग करके उससे प्रायश्चित्त करवाया। वह भी अन्य उपासकोंकी तरह स्वर्ग चला गया। कुण्डकोलिक उपासक छठा उपासक कुण्डकोलिक कांपिल्यपुरका रहनेवाला था। उसकी पत्नीका नाम पुष्पा था। उसके पास कुल १८ करोड़ सुवर्णमुद्राएँ और ६० हज़ार गाएँ थीं। वह एक बार अशोकवन नामके उद्यानमें व्रताचरण कर रहा था । उस समय एक देवता आकर उससे बोला, “हे देवानुप्रिय, गोशाल मंखलिपुत्रका धर्म उत्तम है। उसमें उत्थानबल, कर्म, पुरुषपराक्रम नहीं है। भगवान् महावीर स्वामीका धर्म झूठा है।" कुण्डकोलिकने पूछा, “ यदि उत्थान आदि नहीं है और भगवान् महावीर स्वामीका धर्म झूठा है, तो तूने ऋद्धि कैसे प्राप्त की ? ” देवताने कहा, " मैंने यह ऋद्धि उत्थान आदिके बिना ही प्राप्त की।" कुण्डकोलिक बोला, “ यह तेरा कथन मिथ्या है ।" यह सुनकर वह देवता निरुत्तर हुआ और चला गया। __ यह बात महावीर स्वामीको मालूम हुई तो उन्होंने कुण्डकोलिकका अभिनन्दन किया । कुण्डकोलिक भी स्वर्ग चला गया। शब्दालपुत्र उपासक सातवाँ उपासक शब्दालपुत्र पोलासपुरमें रहनेवाला कुम्हार था। वह पहले आजीवक उपासक था। उसके पास कुल तीन करोड़ सोनेकी . मुद्राएँ और दस हज़ार गाएँ थीं। उसकी पत्नीका नाम अग्निमित्रा था । उसके बर्तनोंके पाँच कारखाने थे जिनमें बहुत-से लोग काम करते थे । वह एक बार अशोकवन नामक उद्यानमें जाकर आजीवक मतके अनुसार व्रत पालन कर रहा था । उस समय एक देवता वहाँ जाकर उससे बोला,

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